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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ९ सू०५ भव्यद्रव्यदेवाद्युद्वर्त्तननिरूपणम् ३३७ किंवा वैमानिकादिषु सर्वार्थसिद्धपर्यन्तेषु उपपद्यन्ते ? इति पृच्छा, भगवानाह'गोयमा ! नो भवणवासिदेवेसु उववज्जति, णो वाणमंतरदेवेसु, णो जोइसिएसु, वेमाणियदेवेसु उववज्जति, सम्वेसु वेमाणिएमु उववज्जंति, जाव सव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोक्वाइएसु उववज्जति' हे गौतम ! धर्मदेवा नो भवनवासिषु उपपद्यन्ते, नो वानव्यन्तरदेवेषु, नो वा ज्योतिषिकदेवेषु उपपद्यन्ते, अपितु वैमानिकदेवेषु उपपद्यन्ते, तत्रापि सर्वेषु-सौधर्मशानायच्युतान्तेषु द्वादशसु वैमानिकेषु उपपद्यन्ते, यावत्-नवग्रैवेयक-विजयजयन्तादिसर्वार्थसिद्धपर्यन्त पञ्चानुत्तरौपपातिकेषु देवेषु उपपद्यन्ते, तत्रापि 'अत्थेगइया सिझंति जाव अंतं करेंति' अस्स्येकके या वानव्यन्तरों में उत्पन्न होते हैं ? या ज्योतिषियों में उत्पन्न होते हैं ? या सर्वार्थसिद्धपर्यन्त के वैमानिकों में उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! नो भवणवासिदेवेसु उववज्जंति, णो वाणमंतरदेवेसु उववज्जति, णो जोइसिएसु उववज्जति, वेमाणियदेवेसु उवज्जंति सम्वेसु वेमाणिएप्सु उवजंति, जाव सव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोषवाइएसु उववज्जंति' धर्मदेव असुरकुमार आदि भवनवासियों में उत्पन्न नहीं होते हैं, वानव्यन्तरदेवों में उत्पन्न नहीं होते हैं, ज्योतिषिक देवों में उत्पन्न नहीं होते हैं, वे तो वैमानिकों में ही उत्पन्न होते हैं और उनमें भी सब वैमनिकों में उत्पन्न हो जाते हैं-ऐसा कोई उनके लिये भेद नहीं है कि वे अमुकवैमानिकों में ही उत्पन्न हो सौधर्मदेवलोक से लगाकर सर्वार्थसिद्धतक के अनुत्तर विमान में वे उत्पन्न हो सकते हैं (अत्थेगइया सिझति जाव अंतंकरेंति) तथा इन धर्मदेवों દેમાં ઉત્પન્ન થાય છે? કે વાનયંતર દેવમાં ઉત્પન્ન થાય છે? કે તિષિક દેવોમાં ઉત્પન્ન ઉત્પન્ન થાય છે? કે સર્વાર્થસિદ્ધ પર્યન્તના વૈમાનિક દેવોમાં ઉત્પન્ન થાય છે? भडावीर प्रभुना उत्त२-" गोयमा!" गीतम! “नो भवणवासी देवेस उववज्जति, णो वाणमंतरदेवेसु उववजंति, णो जोइसिएसु उववज्जति" - દેવે ભવનપતિ દેવોમાં ઉત્પન્ન થતા નથી, વાનવ્યંતર દેવમાં પણ ઉત્પન્ન यता नथी, ज्योतिष हेवामा ५९५ यता नथी, “वेमाणियदेवेस उपवज्जति, सव्वेसु वेमाणिएसु उववज्जति, जाव सव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइएसु उवव जति" पन्त तसा वैमानि वामां पन थाय छ त। अभ વૈમાનિક દેવામાં જ ઉત્પન થાય છે, એવું નથી, પરંતુ સૌધર્મ દેવલેકથી લઈને સવર્થસિદ્ધ અનુત્તર વિમાન પર્યન્તના કેઈ પણ વિમાનમાં તેઓ દેવ ३२ 4-1 थाहाय छ तथा “ अत्थे गइया सिझति जाव अंतं करेंति" भ०४३ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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