SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३२ भगवतीसूत्रे वायसादिभ्यो दत्तान्नः कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चित्तः, सर्वालङ्कारविभूषितः, ' मणुभं थालिपागसुद्ध अङ्कारसवंजणाकुलं ' मनोज्ञम् - सरसम्, स्थालीपाकशुद्धम् स्थाल्यां पाकेन शुद्धम्, अष्टादशव्यञ्जनाकुलम् - अष्टादशप्रकारकशाकादियुक्तम्, 'भोयणं ते समाणे तंसि वारिसगंसि वासघरंसि, वण्णओ महब्बलकुमारे' भोजनं मुक्तः सन् तस्मिन् पूर्वोक्ते, ताशके विलक्षणे वासगृहे, वर्णक:- अस्य वासगृहस्य वर्णनम् एकादशशतके एकादशोदेश के महात्रलकुमारप्रकरणे कृतवर्णनानुसारमवसेयम्, 'जाव सपणोवयारकलिए ताए तारिसियाए भारियाए सिंगारागारचारुवहां वह स्नान आदि से निश्चिन्त बनकर बलिकर्म करता है - वायस आदिकों के लिये अनका विभाग कर वितरण करता है एवं दुःस्वप्न आदि के फल के विनाश के निमित्त कौतुक, मंगल एवं प्रायश्चित्त करता है। बाद में वह अपने समस्त अलंकारों से शरीर को विभूषित करता है। ' मणुन्नं थालिपागसुद्ध, अट्ठार सर्वजण कुलं भोगणं' और इस प्रकार से सुसज्जित बनकर वह फिर सरस भोजन को जो स्थाली में पकाने से बिलकुल अच्छी रीति से पक चुका है-जरा भी कच्चा नहीं है -१८ प्रकार के शाकादि के साथ 'भुत्ते समाणे ' बहुत ही रुचिपूर्वक खाता है । 'सितारगंसि वासघरंसि वण्णओ' भोजन क्रिया समाप्त होने पर फिर वह अपने भाग्यशालियों के योग्य-विलक्षण- वासगृह में जाता है - इस वासगृह का वर्णन ग्यारहवें शतक में, ग्यारहवें उद्देशक में महालकुमार के प्रकरण में किया गया है सो वैसा ही जानना चाहिये विभूसिए" त्यार माह ते स्नानाहि विधि पतावीने मिरे छे-पायस આદિને માટે અન્નને વિભાગ કરીને વાયસાદિને તેનુ દાન કરે છે, અને દુઃસ્વપ્ન આદિના ફૂલના વિનાશને નિમિત્તે તુક, મગલ અને પ્રાયશ્ચિત્ત કરે છે. ત્યાર બાદ તે સમસ્ત મલકારા વડે પેાતાના શરીરને વિભૂષિત કરે D. " मगुनं वालिपागसुद्धं, अट्ठार सर्वजणाकुलं भोयणं " ત્યાર ખાદ ઘણી જ સારી રીતે રધાયેલા, બિલકુલ ક્રાચા ન હેાય એવાં ૧૮ પ્રકારના શાકાદિથી युक्त मनोज्ञ लोभनतु " भुत्ते समाणे " रुथिवं आवाहन रैछे. " तंसि तारिसगंसि वासरंसि बण्णओ" मा प्रहारना लोगन खरोशीने ते पोताना વાસગૃડુમાં—શયનખંડમાં જાય છે તે શયનખંડ ભાગ્યશાળીએને ચેગ્ય, વિલ ક્ષણુ માઢિ વિશેષાવાળા છે અગિયારમાં શતકના અગિયારમાં ઉદ્દેશકમાં મહાખલકુમારના શયનખ'ડનુ' જેવુ' વર્ણન કરવામાં આવ્યુ છે, એવું જ થય. નખંડનુ વધુન અહીં પણુ ગ્રહણ કરવું જોઇએ. 'जाब सयणोवयारकलिए ताए तारिसियाए भारियाए सिंगारागारचारुवेसाए सद्धिं. " 66 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy