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________________ २३० भगवती सूत्रे " अमिली, प्रभंकरा इत्यादि वर्णनं बोध्यम् 'सूरस्स वि तदेव ' सुरस्यापि तथैव चन्द्रदेव, सूर्यस्यापि अग्रमहिष्यादि वर्णनं कर्तव्यम् तथाच सूर्यस्य ज्योतिषि केन्द्रस्य ज्योतिषिकराजस्य चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सूर्यप्रभा, आतपाभा, अमिली, प्रभंकरा, इत्यादिरीत्या दशमशतकस्य पश्चमोद्देशकानुसारमेव वर्णनं कर्तव्यम्, गौतमः पृच्छति - चंदिमसूरियाणं भंते! जोइसिंदा जोइसरायाणी केरिसए कामभोगे पश्चणुभवमाणा विहरंति ?' हे भदन्त । चन्द्रसूर्यो खल्लु ज्योतिषिकेन्द्रौ ज्योतिषिकराजानौ, कीदृशान् कामभोगान् मत्यनुभवन्तौ विहरतः ? तिष्ठतः ? भगवानाह - गोयमा ! से जहानामए के पुरिसे पढम जोन्वणुडाणवकरथे ' - चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिर्माली और प्रभंकरा इसके आगे का और भी वर्णन है जो वहीं से देख लेना चाहिये 'सूरस्स वि तहेच ' चन्द्रके वर्णन के जैसे ही सूर्य की भी अग्रमहिषियां आदि का वर्णन है अर्थात- ज्योतिषिकेन्द्र और ज्योतिषिक राज सूर्य की भी अग्रमहिषियां चार ही कही गई हैं जिनके नाम ये हैं-सूर्यप्रभा, आतषोभा, अर्चिमोली एवं प्रभंकरा - इत्यादिरीति से इस विषय से लगता हुआ वर्णन दशवें शतक के पांचवें उद्देशक के अनुसार यहां कर लेना चाहिये. " , अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' चंदिमसूरियाणं भंते । जोइसिंदा जोइसरायाणो, केरिसए कामभोगे पञ्चणुभवमाणा विहरंति' हे भदन्त ! ज्योतिषिकों के इन्द्र और ज्योतिषिकों के राजा जो चंद्र और सूर्य हैं - वे कैसे कामभोगों को भोगते हैं? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैंगोमा' हे गौतम! ' से जहा नामए केइ पुरिसे' जैसे कोई एक पुरुष છે. તેમનાં નામ નીચે પ્રમાણે છે-ચન્દ્રપ્રભા, યાનાભા, અર્ચિ'માંલી અને अल ४२रा त्यार जाहनु ने वायुन छे, ते त्यांची वांची सेवु " सूरस्स वि तहेब ” यन्द्रना वर्षानना भे ४ सूर्यनी श्रमहिषीओ महिनु वर्षान पा સમજવુ' એટલે કે જ્યેાતિષિકેન્દ્ર અને વૈતિષિકરાજ સૂર્યને પણ ચાર अश्रमहिषीथे। छे. तेमनां नाम नीचे प्रमाणे छे- सूर्य प्रला, आतपाला, अर्थिમંત્રી અને પ્રભુ'કરા, ઈત્યાદિ સમસ્ત વર્ણન દસમાં શતકના પાંચમા ઉદ્દેશકમાં કથિત વર્ણન અનુસાર અહીં પણ ગ્રહણ કરવું જોઈએ, " गौतम स्वाभीने प्रश्न - " च दिमसूरियाणं भंते! जोइसिंदा जोइसरायाणो केरिसए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणा विहरंति " हे भगवन् ! ज्योतिषिधना ईन्द्रो અને જ્યેાતિષિકાના રાજા એવા જે સૂર્ય અને ચન્દ્ર છે, તે કેવા કામભોગ ભાગવે છે ? महावीर अलुनो उत्तर- " तोयमा !" हे गौतम! " से जहानामए के શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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