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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० ५ पुद्गलपरिवर्ताल्पबहुत्वनिरूपणम् १४९ कार्मणपुद्गलपरिवर्ताः अनन्तगुणा भवन्ति । अन्ते गौतमो भगवद्वाक्यं प्रमाणयन्नाह'सेव भंते ! सेव भंते त्ति भगवंजाव विहरइ' हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्त सत्यमेव, हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्त सर्व सत्य मेवेति कथयन् भगवान यावगौतमः संयमेन तपसा आत्मानं भावयमानो विहरति-तिष्ठति ॥सू० ५।। ॥ इति श्री विश्वविख्यात-जगद्वरलभ-मसिद्धवाचक पश्चदशभाषा कलितललितकलापालापकाविशुद्धगधपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक वादिमानमर्दक श्री शाहू छत्रपति कोल्हापुररानप्रदत्त'जैनाचार्य' पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर -पूज्य श्री घासीलालबतिविरचितायां श्री "भगवतीसूत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिका. ख़्यायां व्याख्यायां द्वादशशतके चतुर्थोद्देशकः समाप्तः ॥१२-४॥ गुणे हैं। 'कम्मगपोग्गलपरियट्टा अणतगुणा' तैजसपुदगलपरिवर्त की अपेक्षा कार्मणपुद्गलपरिवर्त अनन्तगुणे हैं। अब अन्त में भगवान के वचनों में सत्यता ख्यापित करने के निमित्त गौतम स्वामी कहते हैं'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं जाव विहरई हे भदन्त ! आपके द्वारा कहा सर्व सत्य ही है, हे भदन्त ! आपके द्वारा कहा गया सब कथन सत्य ही है-इस प्रकार कह कर वे गौतम भगवान् संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थानपर विराजमान हो गये ॥सू०५॥ जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर श्री घासीलालजी महाराज कृत "भगवतीसूत्र" की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके बारहवें शतक का चौथा उद्देशक समाप्त ॥१२-४॥ ५० ४२di riyसपरिवत मनत! 2. “कम्मापोग्गलपरियट्टा अणंतगुणा" तेसशसपरिवत ४२i पुरसपरिवत मन छे. ભગવાનના વચનને પ્રમાણભૂત ગણીને ગૌતમસ્વામી કહે છે કે "सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति भगवं जाव विहरइ” “उससवन ! मा ४ તે સત્ય જ છે. હે ભગવન ! આપે આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું તે યથાર્થ જ છે.” આ પ્રમાણે કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણ નમસ્કાર કરીને, તપ અને સંયમથી પિતાના આ માને ભાવિત કરતા થકા ભગવાન ગૌતમ પિતાને સ્થાને વિરાજમાન થઈ ગયા. સૂપા Iબારમાં શતકને ચેાથો ઉદ્દેશક સમાપ્તા૧૨-જા. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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