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________________ १३८ भगवतीसूत्रे सम्वदन्वा आणावानुसार, सेसं तं चैत्र नवरम् पूर्वापेक्षया विशेषस्तु - तेजसकार्मणमनोवच आनमाणेषु वर्तमानैः जीवैः तेजसकार्मणमनोवचःप्रायोग्यानि द्रव्याणि आनमाणमायोग्यानि तु सर्वद्रव्याणि - सर्वप्रकाराणि द्रव्याणि तैजसकार्मणमनोवच आनमाणतया गृहीतानि वद्धानि स्पृष्टानि कृतानि प्रस्थापितानि निविष्ठानि अभिनिविष्टानि अभिसमन्वागतानि, पर्यात्तानि, परिणामितानि, निर्जीर्णानि, निःसृतानि निःसृष्टानि भवन्ति, शेषं तदेव पूर्वोक्तयदेव सर्वमवसेयम् ॥सू० ३ || मूलम् - ओरालियपोग्गलपरियहे णं भंते! केवइकालस्स निव्वत्तिजइ ? गोयमा ! अनंताहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं एवइकालस्स निव्वतिज्जइ । एवं वेउव्त्रियपोग्गल परियट्टे वि, एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियहे वि एयस्स णं भंते! ओरालियपोग्गल परियट्टनिव्वत्तणाकालस्स वेउव्वियपोग्गल जाव आणापाणुपोग्गल परियहनिव्वत्तणाकालस्स य कयरे कयरे हिंतो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे कम्मगपोग्गल परियइनिव्वत्तणाकाले तेयापोग्गलपरियटनिव्वत्तणाकाले चाहिये - तेजस, कार्मण, मनः, वचन, एवं आनप्राण इनमें वर्तमान जीवने तेजस, कार्मण, मन, वचन, और आनप्राण के प्रायोग्य समस्त द्रव्योंका सब प्रकारके द्रव्यों को तैजस कार्मण, मन, वचन, एवं आनप्राणरूप से गृहीत किया है, बद्ध किया है स्पृष्ट किया है, विहित किया है, प्रस्थापित किया है, निविष्ट किया है, अभिनिविष्ट किया है, अभिसमन्वागत किया है, परितःगृहीत किया है, परिणामित किया है, निर्जीर्ण किया है, निःसृत किया है और निःसृष्ट किया है, इसके आगे की और सब वक्तव्यता पूर्वोक्तरूप से जाननी चाहिये ॥ सू० ३ ॥ - તેજસ, કાણુ, મન, વચન અને અનપ્રાણ, આ શરીરમાં રહેલા જીવે તેજસ, કામ ણુ, મનઃ, વચન અને આનપ્રાણુ ચેગ્ય સમસ્ત પુદ્ગલ द्रव्योने तैक्स, अर्भय, मनः, वयन અને નપાણુરૂપે ગૃહીત કર્યા છે, અદ્ધ કર્યાં છે, પૃષ્ટ કર્યો છે, વિહિત કર્યાં છે, પ્રસ્થાપિત કર્યાં છે, નિવિષ્ટ કર્યો છે, અભિનિવિષ્ટ કર્યો છે, અભિસમન્વાગત કર્યાં છે, પરિતઃગૃહીત કર્યો छे, परियाभित र्या छे, निकल र्या छे, निःसृत र्या छे, निःसृष्ट છે, આદિ પૂર્વોક્ત સમસ્ત કથન અહીં પશુ ગ્રહણ કરવું જોઇએ. પ્રસૂ૦૩ य શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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