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दूसरा उद्देशा
४० तेरहवें शतक के दूसरे उद्देशे का संक्षिप्त विषयविवरण ४१ देव विशेष क निरूपण
तीसरा उद्देशा
४२ तीसरे उद्देशे का संक्षिप्त विषय विवरण
४३ परिचारण का कथन
चौथा उद्देशा
४४ चौथे उद्देशे का संक्षिप्त विषय विवरण ४५ चौथे उद्देशे की संग्रहार्थ गाथा
४६ नारक पृथ्वी संबंधी कथन
४७ स्पर्शद्वार का कथन ( नरकों में बादर अकायिक स्पर्श भी देवकृत ही समझना चाहिये)
४८ रत्नप्रभादिप्रणिधि ( अपेक्षा ) द्वार का निरूपण ४९ निरयान्तद्वार का निरूपण
५० लोकमध्यद्वार का निरूपण
५१ दिग्र विदिक् प्रवद्वार का निरूपण
५२ परिवर्तनद्वार का निरूपणम्
५३ स्पर्शनाद्वार का निरूपण
५४ द्विपदेशादि पुत्रलास्तिकाय स्पर्शनाद्वार का निरूपण
५५ अवगाहनाद्वार का निरूपण
५६ जीवावगाढद्वार का निरूपण
५७ अस्तिकायप्रदेश निषदनद्वार का निरूपण
५८ बहुसमद्वार का निरूपण
५९ लोकसंस्थानद्वार का निरूपण
पांचवां उद्देशा
६० नैरयिकों के आहार का निरूपण
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
समाप्त
५१५-५१६
५१७-५६०
५६१
५६२
५६३-५६४
५६५-५६६
५६७-५८१
५८२-५८४
५८५-५८७
५८८-५८९
५९०-५९५
५९६-६०४
६०५-६१३
६१४-६३२
६३३-६७०
६७१-६९९
७००-७०४
७०५-७१०
७११--७१३
७१४-७१७
७१८-७२०