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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १० उ० ३ स. १ देवस्वरूपनिरूपणम् ८५ समडे' नायमर्थः समर्थः, 'एवं समडिया देवी समड्रियाए देवीए तहेव' एवं पूर्वोक्तरीत्या समर्द्धिका देवी समद्धि काया देव्याः मध्यमध्येन किं व्यतिव्रजेत् ? तथैव-नायमर्थः समर्थः, 'महिडिया वि देवी अप्पट्टियाए देवीए तहेव' तथा महद्धिकाऽपि देवी अल्पर्धिकाया देव्याः मध्यमध्येन तथैव व्यतिब्रजेत् , ' एवं एकेके तिनि तिन्नि आलावगा भाणियव्या, जाव महिड़ियाणं भंते ! वेमाणिणी अप्पड्रियाए वैमाणिणीए मज्जमज्जेणं वीइवएज्जा?' एवं रीत्या एकैकस्मिन् त्रयस्त्रयः आलापका भणितव्या वक्तव्याः, यावत्-महर्द्विका खलु अमुरकुमारी अल्पर्द्धिकाया असुरकुमार्याः मध्यमध्येन किं व्यतिव्रजेम् ? एवमेव महिद्धिका सुवर्णकुमारी प्रभृतिः अल्पद्धिकायाः सुवर्णकुमारीप्रभृतेः मध्यमध्येन किं व्यतिव्रजेत् ? बीच से होकर निकल सकती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-णी इणटे सम?' हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ‘एवं समडियाए देवीए तहेव' इसी तरह से ऐसा भी समझना चाहिये कि समद्धिक देवी समद्धिक देवी के बीचोंबीच से होकर नहीं निकल सकती है। "महिडिया वि देवी अप्पडियाए देवीए तहेव' परन्तु जो महद्धिक देवी है वह अल्पद्धिक देवी के बीचोंबीच से होकर अवश्य निकल सकती है। 'एवं एकेके तिनि तिनि आलावगा भाणियव्वा, जीव महिडियाण भंते ! वेमाणिणी अप्पड्डियाए वेमाणिणीए मज्झमज्झेण वीइवएज्जा' इस रीति से एक एक में तीन तीन आलापक कहना चाहिये। यावत् महर्द्धिक असुरकुमारी अल्पर्धिक असुरकुमारी के बीचोंबीच से होकर निकल सकती हैं क्या ? इसी तरह से महर्द्धिक सुवर्णकुमारी आदि देवियां अल्पर्द्धिक सुवर्णकुमारी आदि देवियों के बीचोंबीच से होकर
गौतम ! मेवी पात सलवी शती नथी. “ एवं समइढियाए देवीए तहेव" એજ પ્રમાણે સમદ્ધિક દેવી સમદ્ધિક દેવીની વચ્ચે થઈને નીકળી શકતી નથી - हाय तनी असावधानता य तो ते तेनी १२येथी नlsvil 32. “ महिइढिया वि देवी अप्पढियाए देवीए तहेव" ५२न्तु मडाद्धिवाणी वीनी ये यअवश्य नीजी छे “एवं एक्कके तिन्नि तिन्नि आलावगा भाणियव्वा -जाव महि ढियाणं भंते ! वेमाणिणी अप्पड्ढियाए वेमाणिणीए मज्झमझेणं वीइ. घरज्जो" ॥ रीत सुशुभारीथी वैमानि वी पय-तनी पीसा विषय ત્રણ આલાપક સમજવા. જેમ કે પહેલે આલાપક અલપદ્ધિક અસરકમારી આદિ દેવી મહદ્ધિક અસુરકુમારી આદિ વિષે સમજે. બીજે આલાપક બને સમદ્ધિક અસુરકુમારી આદિ દેવીઓ વિષે અને ત્રીજે મહર્થિક અસુરકુમારી
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯