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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०२ सू०३ जयन्त्याः प्रश्नोत्तरवर्णनम् ७४१ बद्धाः दृढबन्धनबद्धाः प्रकरोति' इत्यादि यावत् "चातुरन्तसंसारकान्तारम् अनुपर्यटति" इतिपर्यन्तं वाच्यम् , 'एवं चक्खिदियवसट्टे वि एवं जाव फासिदियवसट्टे जाव अणुपरियट्टइ' एवं-श्रोत्रेन्द्रियवशातंवदेव चक्षुरिन्द्रियवशाततॊऽपि एवंयावत्-घ्राणेन्द्रियवशातः, निवेन्द्रियवशातः, स्पर्शेन्द्रियवशार्तश्च जीवः क्रोधवार्तजीववदेव विज्ञेयः यावत् चातुरन्तसंसारकान्तारम् अनुपर्यटति । 'तएणं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयम सोचा निसम्म हट्ठा सेसं जहा देवाणंदाए तहेव पव्वइया जाव सव्वदुक्खप्पहीणा' ततः खलु सा जयन्ती श्रमणोपासिका श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अनिकेसमीपे, एतमर्थम् - पूर्वोक्तार्थ सर्व श्रुखा, निशम्य-हृदि अवधार्य, हृष्टतुष्टा शेषं यों को जो शिथिल बन्धन से बद्ध हुई होती हैं दृढयन्धन से बद्ध करता है, इत्यादि कथन से लेकर वह चातुरन्त-चतुर्गतिरूप संसार कान्तार में परिभ्रमण करता है । इसी प्रकार से 'चक्षुइन्द्रिय के वशवर्ती हुआ, घ्राणेन्द्रिय के वशवर्ती हुआ और स्पर्शनइन्द्रिय के वशवर्ती हुआजीव क्रोध के वशवर्ती हुए जीव की तरह ही आयुकर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों को जो शिथिलबन्धन से बद्ध करता है दृढबन्धन से बद्ध करता है और वह चतुर्गतिरूप संसार में परिभ्रमण करता है। 'तएणं सा जयंती! समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमट्ट सोच्चा निसम्म हट्टतुहा सेसं जहा देवाणंदाए तहेव पव्वइया जाव सम्वदुक्खप्पहीणा' इसके बाद श्रमणोपासिका जयन्तीने श्रमण भगवान् महावीर के पास पूर्वोक्त सब अर्थ को सुनकर के, और उसका मनन करके बड़ी हर्षित દઢ બન્ધવાળી કરે છે, ઈત્યાદિ કથન અહીં પણ ગ્રહણ કરવાનું છે. “એવો જીવ ચાર ગતિવાળા સંસારકા-તરમાં પરિભ્રમણ કર્યા કરે છે,” આ કથન પર્યન્તનું પૂકત કથન અહીં ગ્રહણ કરવું જોઈએ એજ પ્રમાણે ચક્ષુઈન્દ્રિથને, ઘણેન્દ્રિયને, જિવાઈન્દ્રિયને અને સ્પર્શેન્દ્રિયને વશવતી બનેલે જીવ પણ ક્રોધને વશવર્તી બનેલા જીવની જેમ આયુકર્મ સિવાયની સાતે કર્મપ્રકતિઓને શિથિલને બદલે દઢ બન્ધવાળી બનાવે છે અને ચાર ગતિ રૂપ સંસારમાં પરિભ્રમણ કર્યા કરે છે. “तएण सा जयंती समणावासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयम' सोच्चा निसम्म हट्ठतुद्वा सेसं जहा देवाणंदाए तहेव पव्वइया जाव सव्वदुक्खापहीणा" श्रम लगवान महावीरनी समक्ष पूति विषयन' પ્રતિપાદન શ્રવણ કરીને અને તે બાબતમાં મનન કરીને શ્રમણોપાસિકા શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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