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भगवतीसूत्रे सिद्धम् , नो परिणामतः पाप्तं भवति, 'जयन्ती पृच्छति-'सव्वेऽविणं भंते ! भवसिद्धिया जीवाः सिज्झिस्संति ?' हे भदन्त ! सर्वेऽपि खलु भवसिद्धिकाः जीवाः कि सेत्स्यन्ति ? सिद्धि प्राप्स्यन्ति ? भगवानाह-'हता, जयंती! सब्वेऽविणं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति' हे जयन्ति ! हम, सत्यम् , सर्वे. ऽपि खलु भवसिद्धिकाः जीवाः सेत्स्यन्ति अन्यथा तेषां भवसिद्धिकत्वमेव नो भवेत् , जयन्ती पृच्छति-'जह णं भंते ! सव्वे भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति तम्हाणं भवसिद्धियविरहिए, लोए भविरसह ? हे भदन्त ! यदि सर्वे भवसिद्धिका जीवाः सेत्स्यन्ति, तदा खलु भवसिद्धिकविरहितः-मवसिद्धिकैः शुन्यः लोको भविप्यति किं ? भगवानाह-'णो इणढे सम?' हे जयन्ति नायमर्थः समर्थः भवसिद्धिजीवों में भवसिद्धिकता स्वभाव से ही होती है, परिणामरूप परिवर्तन से प्राप्त नहीं होती है। अब इस पर जयंती ऐसा पूछती है-'सव्वे वि णं भंते ! भवसिद्धिया जीया सिन्झिस्संति' हे भदन्त ! तो क्या जितने भी भवसिद्धिक जीव हैं, वे सब सिद्धि को प्राप्त करेंगे? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, जयंती' हां, जयन्ती ! 'सन्धे विण भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति' समस्त भवसिद्धिक जीव सिद्धि को प्राप्त करेंगे जो ऐसा न हो तो उनमें भवसिद्धिकता ही नहीं हो सकती है। अब पुनः जयन्ती इस पर ऐसा पूछती है-'जहण भंते ! सव्वे भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति तम्हाणं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्ता' यदि सब भवसिद्धिक जीव सिद्धि को प्राप्त करेंगे तो यह लोक भवभसावी२ प्रभुना उत्तर-" जयंती ! समावओ, नो परिणामओ " यति ! જીને ભવસિદ્ધિકતાની પ્રાપ્તિ સ્વભાવથી જ થાય છે-પરિણામ રૂપ પરિવ નથી ભવસિદ્ધિતાની પ્રાપ્તિ થતી નથી.
यती श्रमासिकाना प्रभुन श्री 48-" सव्वे विणं भंते ! भव. मिडिया जीवा सिन्झिस्संति ?"लगवन् ! २८मा लसद्व छ તેઓ બધાં શું સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરશે?
महावीर प्रभुन। उत्तर-“हंता, जयंती" यन्ती ! “ सव्वे वि गं भवसिद्धिया जीवा सिजिमस्संति" सघणा सिद्धि सिद्धि प्रात ४२. જે એવું બનતું ન હોય તે તેમનામાં ભવસિદ્ધિકતા જ કેવી રીતે સંભવી શકે?
यन्ती विहान प्रश्न-" जइण भंते ! सम्वे भवसिद्धिया जीवा सिज्झिसंति तम्हाणं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ” सगवन् ! ल्यारे समस्त ભવસિદ્ધિક જી સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરશે ત્યારે શું આ લેક ભવસિદ્ધિકથી સર્વથા રહિત થઈ જશે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯