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________________ ६० भगवती सूत्रे भाणियव्वा जाव आराहिया भवइ ' एवं रीश्या मासिकी भिक्षुप्रतिमा - निरवशेषा सम्पूर्णा भणितच्या वक्तव्या यावत्-आराधिता भवति, तथा च व्युत्सृष्टे कायेत्यक्ते देहे 'जे के परीसहोत्रसम्गा उत्पज्जेति-तंजहा - दिव्या वा, माणुसा वा, तिरिक्खजोणिया वा, ते उत्पन्ने सम्मं सहइ, खमइ, तितिक्खर, अहिया सेइ ' इत्यादि, ये केचित् परीषदोपसर्गा उत्पद्यन्ते - तद्यथा - दिव्या वा-दिविभवा वा मानुषा वा मनुष्यसम्बन्धिनो वा तिर्यग्योनिका वा तान् उत्पन्नान् सर्वान् परीषदोपसर्गान् सहते स्थानाऽविचलनात्, क्षमते क्रोधाभावात्, तितिक्षते - उस्तर में प्रभु कहते हैं- एवं मासिया भिक्खुपडिमा निरवसेसा भाणिDost जाव आराहिया भवइ' हे गौतम! इस रीति से मासिकी भिक्षु प्रतिमा संपूर्णरूप से यहां कहना चाहिये यावत् आराधित होती है यहां तक । तथाच देहके व्युत्सृष्ट हो जाने पर और व्यक्त हो जाने पर अर्थात् संस्कारादि परिकर्म के परिवर्जन से ममत्वरहित एवं वधबन्धादिक अवारणसे आसक्ति रहित देह में हो जाने पर 'जेकेइ परीस होवसग्गा उप्पांति-तं जहां- दिव्या वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा ते उप्पन्ने सम्मं सहह, खमइ, तितिक्खर, अहियासेह' इत्यादि । उस अनमोर के ऊपर जो कोई भी परीषह और उपसर्ग आते हैं चाहे वे देव कृत हों चाहे मनुष्यकृत हों या तिर्यञ्चकृत हों, उन उत्पन्न हुए सब परीषहों और उपसर्गों को अपने स्थान से विचलित नहीं होकर जो सहना है, उनके प्रति जिसे आत्मामें किश्चित् मात्र भी क्रोध नहीं महावीर प्रभुनो उत्तर-" एवं मासिया भिक्खुपडिमा निरवसेसा भाणियन्वा जाव आराहिया भवइ " हे गौतम! अड्डी लिक्षुप्रतिमा विषेनुं समस्त થન “ તે સપૂર્ણ રીતે આરાધિત થાય છે,” આ સૂત્રપાઠ પર્યન્ત શ્રહણુ થવુ लेोि. स्नान, वाजनी सलवट, आहि डियाने शारीरिक संस्कार हे छे. આ રીતે શરીર સ`સ્કારના પરિત્યાગ પૂર્ણાંક અને વધબન્ધાદિક ન રોકવાને કારણે हेड प्रत्येनी व्यासस्तिथी रहित मनी गया पछी " जे केइ परीसहोवसग्गा उपज्जति - तंजहा - दिव्त्रा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा ते उपन्ने सम्मं सहइ, तितिक्ख, अहिया मेइ" इत्यादि. खमइ, તે અણુગાર ઉપર જે કાઇ પરીષહા અને ઉપસર્વાં આવે છે-પછી ભલે તે દેવકૃત હાય, મનુષ્યકૃત હૈ!ય કે તિચક્રુત હાય-તે બધાં પરીષહે। અને ઉપસર્વાંને પાતાને સ્થાનેથી વિચલિત થયા વગર જે સહન કરે છે, તેમના શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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