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भगवतीसो अवधार्य, हृष्टतुष्टा सती, 'समणं भगवं महावीर वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता, एवं क्यासी'-श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा, एवं-वक्ष्यमाणपकारेण, अवादीत-' कह णं भंते ! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छति?" हे भदन्त ! कुतः-कस्मात्कारणात् खलु जीवाः गुरुकत्वम्-कर्मभारयुक्तत्वम् आग
छन्ति-माप्नुवन्ति ? 'हवं' इति वाक्यालङ्कारे भगवानाह-'जयंती! पाणार. वारणं जाव मिच्छादसणसल्लेणं' हे जयन्ति ! जीवाः प्राणातिपातेन-माणिहिंसया यावत् मिथ्यादर्शनशल्येन-मृषावादमारम्य मिथ्यादर्शनशल्यपर्यन्तेन अष्टादश विधपापेन गुरुकत्वं प्राप्नुवन्ति, तदुपसंहरन्नाह-एवं खलु जीवा गरुयत ध्वमागच्छंति, एवं जहा पढमसए जार वीयीवयंति' एवं-पूर्वोक्तरीत्या माणामहावीर के पास धर्म का श्रवण कर और उसका मनन कर हर्षित एवं संतुष्ट होकर के 'समण भगवं महावीरं वंदह, नमंसह, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की उन्हें नमस्कार किया वन्दना नमस्कार करके फिर उसने उनसे इस प्रकार पूछा-'कहं णं भंते ! जीवा गरुयत्तं हव्यमागच्छंति' हे भदन्त ! जीव किस कारण से गुरुत्व (भारीपन) को प्राप्त करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'जयंती ! पाणाइवाएण जाव मिच्छादसणसल्लेणं' हे जयंती ! जीव प्राणियों की हिंसा से यावत् मिथ्यादर्शनशल्यसे-मृषाबाद से लेकर मिथ्यादर्शनशल्यतक के १८ प्रकार के पाप से-कर्मभार से युक्तनारूप गुरुपने को प्राप्त करते हैं। अब उपसंहार करते हुए सूत्र कार कहते हैं-' एवं खलु जीवा गरुयत्तं हन्धमागच्छंति-एवं जहा पढमसए जाव वीयीवयंति' इस पूर्वोक्तरीति से जीव प्राणातिपात से
शन त श्रापि यता ६५ अने सतोषपूर्व “ समण भगव' महावीर वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसिता एवं क्यासी" श्रम सगवान महावीरने વંદણા કરી અને નમસ્કાર કર્યો વંદણા નમસ્કાર કરીને તેમને આ પ્રકારને प्रश्न ५७ये।-" कह णं भंते ! जीवा गल्यत्त हव्वमागच्छह" सावन् ! । કયા કારણે કર્મોભારથી યુકત થાય છે?
महावीर प्रभुने। उत्त२-" जयंती ! पाणाइवाएण जाव मिच्छादसणसम्लेण" હે જયંતિ! જીવ પ્રાણાતિપાતથી હિંસાથી લઈને મિથ્યાદર્શનશલ્ય પર્વતના ૧૮ પાપનું સેવન કરીને કર્મભારથી યુકતતા રૂપ ગુરુપણાને પ્રાપ્ત કરે છે. હવે ઉપસંહાર કરતા સૂત્રકાર કહે છે કે
"एव खलु जीवा गरुयत्तं हवमागच्छंति एवं जहा पढमसए जाव वीयीवयंति" ५युत प्रासाथी ने मिथ्यानिशस्य पय-तना
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯