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प्रमेयचन्द्रिका टीका २०१२ उ०१९०२ शावकचरितनिरूपणम् ६८५ आराहए भवइ' ततः खलु श्रमणो भगवान महावीर स्तेषां श्रमणोपासकानां तस्यां व महाविमहालयायां समायां, पर्षदि धर्मकथा यावत् आज्ञाया आराधको भवति इति, “अस्थिलोए अस्थिअलोए" इतारभ्य "एतस्य धर्मस्य शिक्षायाम् उपस्थितः श्रमणोपासको वा श्रमणोपासिका वा विहरन् आज्ञाया आराधको भवति' इति पर्यन्तम् औपपातिकसूत्रोक्ता धर्मकथाऽत्रवाच्या। 'तएणं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोचा, निसम्म हडतुट्टा उडाए उठेति' ततः खलु ते श्रमणोपासकाः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिके समीपे धर्म श्रुत्वा, निशम्य-हृदि अवधार्य, हृष्टतुष्टाः उत्थया-उत्थानेन, उत्तिष्ठन्ति, 'उठेत्ता समणं से दोनों हाथ जोड़कर उन्हों ने प्रभु की पर्युपासना की, 'तएणं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं तीसे य महतिमहालयाए सभाए धम्मकहा जाव आणाए आराहए भवइ' इसके बाद प्रभु ने इस अति. विशाल सभा में उन श्रमणोंपासकों को धर्मकथा कही, इस धर्मकथा का वर्णन ('एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवहिए समणोवासए वा समणो वासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए भवइ") यहां तक औपपातिक सूत्र के छप्पनवें सूत्र में कहा गया है-सो उसे यहां पर कहलेना चाहिये । 'तएणं ते समणोवासगा भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोचना निसम्म हतुहा उठाए उठेति' इसके बाद वे श्रमणोपासक अमण भगवान् महावीर के मुख से धर्मश्रमण कर और उसे हृदय में धारण कर बहुत ही अधिक हर्षित हुए एवं संतुष्ट चित्त हुए, बाद में ५य तनुं समस्त ४थन. मी अडथु ४२ मे. “वएण' समणे भगव महावीरे तेसिं समणोवासगाण तिसे य महति महालयाए समाए धम्मकहा जाव आणाए आराहए भवइ" त्या२ मा श्रम मापन महावी ते विश સભામાં તે શ્રાવકોને ધમકથા કહી. પપાતિક સૂત્રના પદમાં સૂત્રમાં આ यथानु न मामा मा०यु छे. " अस्थि लोए, अस्थि अलोए"
॥ सूत्रमाथी २३ ४शन " एतस्य धर्मस्य शिक्षायाम् उपस्थितः श्रमणोपासिको या श्रमणापासिका वा विहरन् विहरन्ती वा आज्ञाया आराधको भवति" मा सपा पय-तनपाठ ही ' या' १३ अ५ श्वास. "तएण' ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म स्रोच्चा निसम्म हतुदा उदाए उद्रेति " महावीर प्रभुनी सभी माया सनान तथा તેને હૃદયમાં અવધારણ કરીને તેમને ઘણું જ હર્ષ અને સંતોષ થયે તેઓ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯