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________________ ६६० भगवतीस्त्र महावीरं वदति, नमसंति,' ततः खलु ते श्रमणोपासकाः श्रमणस्य अन्तिकेसमीपे, धर्मं श्रुत्वा निशम्य-हृदिअवधार्य, हृष्टतुष्टाः सन्तः श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दन्ते, नमस्यन्ति, 'वंदित्ता, नमंसित्ता पसिणाई पुन्छति' वन्दित्वा नमस्थित्वा, प्रश्नान् पृच्छन्ति 'पुच्छित्ता, अट्ठाई परियादियंति' पृष्ट्वा, अर्थान् पर्याददति-परिगृह्णन्ति, 'परियाइत्ता, उहाए उठेति' अर्थान् पर्यादाय-परिगृह्य, उत्थयाउत्थानेन उत्तिष्ठन्ति, 'उद्वित्ता, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडि निक्खमंति' उत्थाय, श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिकात्समीपात् , कोष्ठकात् कोष्ठक नाम्नश्चैत्यात् मतिनिष्क्राम्यन्ति-निर्गच्छन्ति 'पडिनिक्रवमित्ता, जेणेव सावत्यी नयरी, तेणेव पहारेत्थ गमणाए' प्रतिनिष्क्रम्य, यत्रेय श्रावस्ती नगरी आसीत् , तत्रैव-गमनाय-गन्तुं प्राधारयन-प्रस्थितवन्तः ॥सू०१॥ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा समणं भगवं महावीर वंदति, नमसंति' इस प्रकार श्रमणोपासकोंने श्रमण भगवान महावीर से धर्म सुनकर और उसे हृदय में धारण कर आनन्दित होकर सतुष्ट चित्त होते हुए श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की नमस्कार किया 'वदित्ता नमंसित्ता पसिणाई पुच्छंति' बन्दना नमस्कार कर फिर उन्होंने उन से प्रश्नों को पूछा-'पुच्छित्ताअट्ठाई परियादियंति' पूछकर उनके अर्थों को समझकर फिर वे उठे 'उहित्ता समणस्स भगवो महावीरस्स अंति. याओ कोड्याओं चेइयाओ पडिनिक्खमंति' उठकर श्रमण भगवान् महावीर के पास से और उस कोष्ठक चैत्य से बाहिर निकले 'पडिमिक्खमित्ता जेणेव सावत्थी नगरी, तेणेव पहारेत्थ गमणाए' बाहर निकल कर जहां श्रावस्ती नगरी थी उस ओर जाने के लिये प्रस्थित होगये।सू०१॥ भग महावीर वंदति नमंसति" मा प्रकारे श्रम समान महावीरनी સમક્ષ ધર્મતત્વનું શ્રવણ કરીને અને તેને હૃદયમાં ધારણ કરીને ખૂબ જ આનંદ અને સંતોષ પામેલા તે શ્રમણોપાસકેએ ભગવાન મહાવીરને વંદણું नम४॥२ ४ा. "वंदित्ता नमंसित्ता पसिणाई पुच्छति" ६ नम२४१२ शन तो तभन डेटा प्रश्रो च्या. "पुच्छित्ता अदाइ परियादियति" પૂછેલા પ્રશ્નોના તેમના દ્વારા અપાયેલા ઉત્તરે દ્વારા પ્રશ્નગત વિષયને તેમણે समल दी। “ परियाइत्ता उढाए उहति” त्या२ मा ते तेमनी उत्थान शतिथी या उद्वित्ता समणस्स भगव ओ महावीरस्त अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिनिक खमंति" ही तो श्रम सगवान महावीर पासेथा तथा ते ४ चैत्यमाथी महा२ नीvया. "पडिनिक्खमिता जेणेव सावत्थी नयरी, तेणेव पहारेत्थ गमणाए" त्यांथा नीजान त। श्रावस्ती नगरी त२१ २वाना थया. सू०१।। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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