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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ०१२ सू०४ पुद्गलस्य सिद्धिनिरूपणम् ६३ 'तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया, जाव असंखेज्जसमयाहिया उकोसेगं दस. सागरोवमाईठिई पण्णत्ता' तेन परम्-तदनन्तरम् , समयाधिका, द्विसमयाधिका, यावत्-त्रिचतुःपश्वषट्सप्ताष्टनवदशसंख्यातासंख्यातसमयाधिका उत्कृष्टेन दशसागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'तेण पर योच्छिन्ना देवाय, देवलोगा य, एवं संपेहेइ' तेन परं-तदनन्तरम् व्युच्छिन्ना देवाश्च, देवलोकाश्च, इत्येवं संप्रेक्षतेविचारयति, 'संपेहेत्ता आयावणभूमीभो पछोरुहई' एवं-पूर्वोक्तरीत्या संप्रेक्ष्यविचार्य, आतापनभूमितः प्रत्यवरोहति-अवतरति, 'आयावणभूमीओ पचोरुहिता तिदंडकुंडिया जाव धाउरत्ताओय गेहइ' आतापनभूमितः प्रत्यवरुह्य-अवतीर्य, की कही गई है 'तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया जाव असंखेज्ज समयाहिया उकोसेणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता' इसके आगे एक समय अधिक दो समय अधिक यावत् तीनसमय अधिक, चारसमय अधिक, पांच समय अधिक, छह समय अधिक, सातसमय अधिक, आठसमय अधिक, नौ समय अधिक दश समय अधिक, संख्यातसमय अधिक और असंख्यात समय अधिक होती हुई उत्कृष्ट से १० सागरोपम की स्थिति हो जाती है अतः जघन्यस्थिति १० हजार वर्ष की और उत्कृष्टस्थिति १० सागरोपम की कही गई है 'तेणपर चोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य एवं संपेहेइ' इसके बाद देव और देवलोक म्युच्छिन्न हो जाते हैं ऐसा उसने विचार किया। संपेहत्ता आयावणभूमीओ पचोरुहइ' ऐसा विचार करके वह आतापना भूमि से नीचे उत्तर आया 'आयावणभूमीओ पच्चोरुहित्ता तिदंडकुंडिया जाय
१२ वषनी य छे. " तेण पर समयाहिया, दुसमयाहिया जाव असंखेज्ज. समयाहिया उक्कोसेण दससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता" त्या२ मा मे, १y, यार, पांय, छ, सात, भा, नव, ४स, सभ्यात भने मसात समय અધિક થતાં થતાં ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ ૧૦ સાગરોપમ સુધીની સ્થિતિ થઈ જાય છે. આ રીતે દેવલેકેમાં દેવેની જ ઘન્ય સ્થિતિ ૧૦ હજાર વર્ષની અને Gट स्थिति इस सांग। ५मनी डाय छे. " तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य एव' संपेहेइ" त्या२ मा । भने देवता विरछन्न थ य छेકે ૧૦ સાગરેપમથી અધિક સ્થિતિવાળા દેવો પણ હોતા નથી અને દેવક પણ હતા નથી એવો તેણે વિચાર કર્યો
“ संपेहेत्ता आयावण भूमीओ पच्चोरुहा" मा प्रभारी वियर शर त माता५ भूमि ५२थी नीचे उता. “आयावणभूमीओ पच्चोहहिता
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯