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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० १२ सू०२ ऋषिभद्रपुत्रकथननिरूपणम् ६२९ देवलोकाचेति, सत्यः खलु अयमर्थः-ऋषिभद्रपुत्रोक्तो विषयः यथार्थ एवेति मावः। 'तएणं ते समणोवासया समणस्स भगवो महावीरस्त अंतिए एयमटुं सोचा, निसम्म, समणं भगवं महावीरं वंदंति, नमसंति,' ततः खलु ते श्रमणोपासका श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिके-समीपे एतमर्थ श्रुत्वा, निशम्यहृदि अवधार्य, श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दन्ते, नमस्यन्ति, 'वंदित्ता, नमंसित्ता, जेणेव इसिभहपुत्ते समणोवासए, तेणेव उवागच्छंति,' वन्दित्वा, नमस्यित्वा, यत्रैव ऋषिभद्रपुत्रः श्रमणोपासकः आसीत , तत्रैव उपागच्छन्ति, 'उवागच्छित्ता, इसिमद्दपुत्तं समणोवासगं वंदंति, नमसंति' उपागत्य, ऋषिभद्रपुत्रं श्रमणोपासकं, वन्दन्ते, नमस्यन्ति, 'वंदिना, नमंसित्ता, एयमह सम्मं विणएणं भुज्जो भुज्जो खाति' वन्दित्वा, नमस्थित्वा एतमर्थम् ऋषिभद्रपुत्रस्यापलापरूपं स्वापराधम् , देवलोकों में नहीं है तो ऐसा उनका यह कथन सत्य है-झूठ नहीं है। 'तएणते समणोवासया समणस्स भगवओमहावीरस्स अंतिए एयम8 सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वदति, नमसंति' इस प्रकार प्रभु महावीर का कथन सुनकर उन लोगों ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की और उन्हें नमस्कार किया 'वंदिता नमंसित्ता जेणेव इसिमपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छंति' वन्दना नमस्कार कर फिर वे वहां से जहां श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र श्रावक थे वहां पर आये-वहां उवागच्छित्सा इसिभद्दपुत्तं समणोवासगं वंदति नमसंति' आकरके उन्हों ने श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र को वंदना की नमस्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्ता एयम8 सम्म विणएणं भुज्जो २ खाति' वन्दना नमस्कार करके फिर उन्हों ने ऋषिभद्रपुत्रसे उसके कहे गये ५ नथी," तो तभनु मा थन सत्य छे-असत्य नथी. “ तएण ते समजोवासया समणस्स भगवओ महावीरस्म अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म समण भगवं महावीर वंदंति, नमसंति" श्रम समपान महावीरनु । प्रा२नु' કથન સાંભળીને અને તેને હદયમાં ઉતારીને, તેમણે તેમને વંદણુ કરી અને नमः४२ ४ा. वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव इसिभहपुत्ते समणोवासए वेणेव स्वा. गच्छंति" ए नभ४॥२ शन तसा यां विसपुत्र श्री मेहता Ni माया. “ उवागच्छित्त। इसिभहपुत्तं समणोवासगं वंदति नमसंति” त्यो આવીને તેમણે ઋષિભદ્રપુત્ર શ્રાવકને વંદણ કરી અને નમસ્કાર કર્યા. "वंदित्सा, नमंसित्ता एयम सम्म विणएण भुज्जो २ खाति” नमः સ્કાર કરીને તેમણે ઋષિભદ્રપુત્ર પાસે પિતાના દેષની તેમની સાચી વાતને नही माना ३५ होपनी) घgi विनयपूर्व पापा२ क्षमा भाभी. "तएण શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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