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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ११ ० ११ सुदर्शनचरितनिरूपणम् 'नवरं चोrayoors afeज्जइ, बहुपडिपुन्नाई दुवाळसवासाई सामन्नपरियागं पाउण सेसं तंत्र' नवरम् - ऋषभदत्तापेक्षया सुदर्शस्य विशेषस्तु-अयमेव यत्अयं सुदर्शनः अनगारः, चतुर्द्दशपूर्वाणि अधीते, ऋषभदत्तस्तु एकादशभङ्गानि अधीतवान, अथच अयं सुदर्शनः बहुप्रतिपूर्णानि द्वादशवर्षाणि श्रामण्यपर्याय म् पालयति, शेषं तदेव - ऋषभदत्तमकरणोक्ता देवाव से यम्, अन्ते गौतम आह- 'सेनं भंते !' सेवं भंते !' हे भदन्त ! तदेव - भगवदुक्त सत्यमेव, हे भदन्त ! तदेव - भगवदुक्तं सर्वथा सत्यमेति ॥ सू० ११ ॥ इति महाबलः समाप्तः ॥ इति श्री विश्वविख्यात जगदवल्ल मादिपदभूषित बालब्रह्मचारी 'जैनाचार्य ' पूज्यश्री घासीलाल व्रतिविरचिता श्री " भगवती" सूत्रस्य प्रमेयचन्द्रिका ख्यायां व्याख्यायां एकादशशतकस्य एकादशोदेशकः समाप्तः ॥ ०११-११॥ सर्वथा प्रहीण हो गये 'नवरं चोहसपुव्वाइं अहिज्जर, बहुपडिपुन्नाई दुबालसवासाई सामन्नपरियागं पाउणइ सेसं तंचेव' ऋषभदत्त की अपेक्षा इस सुदर्शन के कथन में केवल यही विशेषता है कि सुदर्शन अनगार ने चौदहपूर्वी का अध्ययन किया तब कि ऋषभदसने केवल ग्यारह ११ अंगों का ही अध्ययन किया तथा सुदर्शन अनगार ने ठीक १२ वर्षों तक श्रामण्यपर्याय का पालन किया इत्यादि सब कथन ऋषभदन्त प्रकरण की तरह ही जानना चाहिये अन्त में गौतम प्रभु के इस कथन की सत्यता ख्यापन करने के निमित्त कहते हैं 'सेवं भंते ! सेव भंते ! न्ति' हे भदन्त ! आप का कहा हुआ यह सब विषय सर्वथा सत्य ही है, है भदन्त आपका कहा हुआ यह सब विषय सर्वथा सत्य ही है । इस प्रकार कह कर वे गौतम यावत् अपने स्थान पर बिराजमान हो गये ।सु. ११। || ग्यारहवां उद्देशक समाप्त ॥११- ११॥ ६१५ चोपुव्वाई अहिज्जइ, बहुपडिपुन्नाई दुवाल सवासाई सामन्नपरियांग पाउइ- सेस तंचेव " ऋषभत्तना उथन उरतां सुदृर्शनना अथनभां नीचे प्रमाणे વિશેષતા સમજવી—ઋષભદત્તે માત્ર અગિયાર અંગેનું અધ્યયન કર્યુ હતુ, ત્યારે સુદર્શને ૧૪ પૂર્વીનું અધ્યયન કર્યું" હતું. તથા સુદર્શન શેઠે પૂરેપૂરા ખાર વર્ષ સુધી શ્રામણ્ય પર્યાયનું પાલન કર્યુ" હતું, ઇત્યાદિ સમસ્ત ઋષભદત્તના પ્રકરણમાં કહ્યા અનુસાર સમજવુ. કથન હવે ઉદ્દેશાને અંતે મહાવીર પ્રભુનાં વચનામાં પાતાની અપાર શ્રદ્ધા व्यक्त उरता गौतम स्वाभी उसे छे - " सेब भंते ! सेवं भंते! त्ति " हे लग વન્! આ વિષયનું આપે જે પ્રતિપાદન કર્યું તે સથા સત્ય છે. હે ભગવન્! આપે જે કહ્યુ' તે યથાર્થ જ છે” આ પ્રમાણે કહીને મહાવીર પ્રભુને વદણા નમસ્કાર કરીને તેએ પેાતાને સ્થાને વિરાજમાન થઈ ગયા, પ્રસૂ૦૧૧) અગિયારમે, ઉદ્દેશે સમાપ્ત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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