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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११०११ सू० १० सुदर्शन खरितनिरूपणम् ६०३ परित्यागो नोचितः इतिभावः, किन्तु महाबलस्य दीक्षां ग्रहीतुं प्रबलेच्छामूअत्याग्रहं दृष्ट्वा, अन्ते तौ, मातापितरौ, अकामेनैव - अनिच्छयैव खलु महाबलं कुमारम्, एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण, अवादिष्टाम्- 'तं इच्छामो ते जाया ! एगदिवसमवि रज्जसिरिं पात्तिए' हे जात ! पुत्र ! तत् अथ, आवाम् इच्छा वस्तावत् तव एकदिवसमपि - दिनेकार्थमपि, राज्यश्रियं - राज्यलक्ष्मीं द्रष्टुम् आवयोः समक्षम् एकदिनमपि राज्यश्रियं त्वं परिभुक्ष्य, येन आवयोर्मनोरथः सफलः स्यादितिभावः । 'तरणं से महम्बले कुमारे अम्मापियराणवयणमणुवत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठ' ततः खलु स महाबलः कुमारः, अम्बापित्रोः वचनम् अतुवर्तमानः- अनुत्तरयन् - रवीकुर्वन्, तूष्णीं मौनो भूत्वा संतिष्ठते, 'तपणं से बले चाहिये मातापिता के कहने का अभिप्राय केवल ऐसा ही रहा कि हे पुत्र ! तुम इस संपत्ति आदिका और इन राजकुलबालिकाओं का परिस्थाग मत करो, क्यों कि तुम्हें ऐसा करना उचित नहीं है । परन्तु महाबल ने मातापिता की इस बात को नहीं माना और दीक्षा ग्रहण करने की जो अपनी उत्कट भावना थी उसी पर अस्थाग्रह रखा-माता पिताने जब महाबल के इस दीक्षाग्रहण करने के आग्रह को देखा तो अन्तमें उन्हों ने इच्छा नहीं होने पर भी महाबल कुमार से ऐसा कहा 'तं इच्छामो ते जाया एगदिवसमवि रज्जसिरिं पासितए' हे पुत्र ! हम लोग यही चाहते हैं कि तुम कम से कम एक दिन भी राज्यश्री का उपभोग करो, जिससे हमारा मनोरथ सफल हो. 'तएण से महवले कुमारे अम्मापियराण वयणमणुवत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठा ' मातापिता ने जब महाबल कुमार से ऐसा कहा तब वे इस विषय में उनसे દ્વારા તેને એવું સમજાાવવાને પ્રયત્ન मुरे हो डे 66 ' पुत्र ! तु આ સપત્તિ આદિના તથા આ રાજકન્યાએના પરિત્યાગ કરીને પ્રવ્રજ્યા અ'ગીકાર કરવાના જે વિચાર કરે છે તે ઉચિત નથી ’’ પરન્તુ મહામલ કુમારે માતાપિતાની તે વાતના સ્વીકાર ન કર્યો અને દીક્ષા ગ્રહણ કરવાના પેાતાના અડગ નિર્ધાર જાહેર કર્યા, મહાબલ કુમારના દીક્ષા ગ્રહણ કરવાના खडग निर्धार लेने मातापिता तेने या प्रभा - "त' इच्छामो वे जाया एगदिवसमपि रज्जसिरिं पात्तिए" मेटा! असे ठेवण मेटल ४ हरिछीयो છીએ કે તુ એક દિવસને માટે પણ રાજ્યશ્રીના ઉપભોગ કર, કે જેથી અમારા મનારથ સફળ થાય. तएण से महबलकुमारे अम्मापियराणत्रयणमवत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ " भातापिताये न्यारे महाभय कुमारने म 66 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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