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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ११ सू०७ सुदर्शनचरितनिरूपणम् ५४९ धीयते यः सोऽवमोकः-अलङ्कार स्तं ददाति, प्रयच्छति, 'दलइत्ता सेतं रययामयं विमलसलिलपुण्णं भिंगारं च गिण्हई' दत्वा श्वेतं रजतमयं विमलसलिलपूर्ण भृङ्गारंजलपात्रविशेषं च गृह्णाति, 'गिण्हित्ता मत्थर धोवई' पूर्वोक्त भृङ्गार गृहीत्वा गस्तकानि-तासां शिरांसि धावति-प्रक्षालयति, दासत्वापनयनार्थम् , स्वामिना मस्तकधावने कृते हि दासस्य दासत्वमपगच्छतीति लोकव्यवहारः, 'धोवित्ता, विउलं जीवीयारिहं पीइदाणं, दलयइ' धावित्वा मस्तकानि प्रक्षाल्य, विपुलं-प्रचुरम् जीविकाई-जीविकोचितम्, भीतिदानम्-प्रसन्नतानिमित्तकं दानं ददाति, 'दलहत्ता सकारेइ, सम्माणेइ' दत्वा सत्कारयति सम्मानयति चेति ॥०७॥ कर (क्यों कि राजचिह्नरूप होने से मुकुट का दान निषिद्ध है) पहिरे हुए शेष अलंकार उन्हें दे दिये । 'दलहत्ता से तं रययामयं विमलसलिलपुण्णं भिंगारं च गिण्हइ' देने के बाद श्वेत, रजतमय-चांदी की कि जो निर्मल जल से भरी हुई थी, झारी उसने अपने हाथ में लिया 'गिण्हित्ता मत्थए धोवेइ लेकर उन सब के मस्तकों को दासत्व दूर करने के निमित्त धुलाया । ऐसा लोक व्यवहार है कि स्वामी यदि जल लेकर दास का मस्तक धोता है तो उसका दासपना दूर हो जाता है। 'धोवित्ता विउल जीवीयारिहं पीइदाणं दलयइ,' मस्तक धोकर के फिर उसने उन्हें जीविका के उचित प्रीतिदान-प्रसन्नतानिमित्तकदान दिया 'दलइत्ता सक्कारेइ, सम्माणेह' दान देकर के फिर उसने उन सब का सत्कार किया और सन्मान किया ।सू०७॥ (મુગટ રાજચિહ્ન ગણાય છે તેથી તેને ત્યાગ કરાય નહીં, વળી મુગટ રાજચિહ્નરૂપ હોવાથી તેનું દાન અનુચિત્ત ગણાય છે. માટે મુગટ સિવાयना मालूपये। पक्षि मानी पात ४N छे.) “ दलइत्ता से तरययामय' विमलसलिलपुण्ण भिंगारं च गिण्हइ” त्या२ मा तेथे थांदीनी मनाली भने निभ ra लसी बेत आरी पोताना या सीधी, “गिण्हित्ता मत्थए धोवेइ " भने ते मी परियारियानां भरतने घो१२।०या. माया તેમને દાસત્વમાંથી મુક્ત કરવા નિમિત્તે કરવામાં આવી. (એ વખતે એ રિવાજ હતું કે માલિક પિતે પાણી લઈને દાસ કે દાસીના મસ્તકને પેવે તે તેમનું हास मापामा५२ य तु तु.) “धोवित्ता विउल जीवियारिहं" पीइदाणं વઢવ મસ્તક ઘેવરાવીને તેણે તેમને આજીવિકાને ગ્ય–જીવનપર્યત નભે ते प्रीतिहान दीधु (प्रसन्नता शहनने प्रीतिहान ४ छे.) “दलहत्ता सकारेइ, सम्माणेइ” मा ५३ हान ने तो तमना सा२ ध्या અને સન્માન કર્યું સૂ૦ ૭ી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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