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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ११ सू०६ सुदर्शनचरितनिरूपणम् ५३७ पुप्फवत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ, संमाणेई' तं स्वप्नं सम्यक्तया प्रतीष्यस्वीकृत्य स्वप्नलक्षणपाठकान् विपुलेन-प्रचुरेण, अशनपानखादिमस्वादिमपुष्पवस्त्रगन्धमाल्यालङ्कारेण सत्कारयति, सम्मानयति, "सकारेत्ता, संमाणेत्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ' सत्कार्य, सम्मान्य, विपुलम्-पचुरम् जीविकाई-जीविकोचित्तम् , प्रीतिदानम्-प्रसन्नता निमित्तकम् उपढौकन-धनं दापयति, 'दलयित्ता, पडिविसज्जेई' दापयित्वा प्रतिविसर्जयति, पडिविसज्जेत्ता सीहासणाओ अब्भुट्टेइ' प्रतिविमृज्य, सिंहासनात् अभ्युत्तिष्ठति, 'अब्भुटेत्ता जेणेय पभावई देवी तेणेव उबागच्छई' अभ्युत्थाय, यत्रैव-प्रभावती देवी आसीत् , तत्रैव उपागच्छति, 'उबागच्छिता, पभावई देवि ताहिं इटाहि कंताहिं जाव संलबमाणे संलवमाणे एवं वयासो'-उपागत्य प्रभावती देवीं ताभिः, इष्टाभिः, कान्ताभिः, असणपाण खाइमलाइम पुष्कवस्थगंधमल्लालंकारेणं सकारेइ संमाणेइ' जब वह स्वप्न को सत्यरूप से अंगीकार कर चुका-तब उसने स्वप्नलक्षण पाठकों का विपुल अशन पान, खादिम, स्वादिम रूप चारों प्रकार के आहार से तथा पुष्प, वस्त्र, गंध, और अलंकारों से सत्कार किया सन्मान किया ' सकारेत्ता, संमाणेत्ता, विउलं जीवियारिह पीइ. दाणं दलयइ, दलयित्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता सीहासणाओ अन्भुट्टेइ, अब्भुढेता जेणेव पभावई देवी, तेणेव उवागच्छइ ' सत्कार और सन्मान करके फिर उस ने उन सब के लिये जीविका के योग्य प्रसन्नता निमित्तक प्रीतिदान दिलाया प्रीतिदान दिला करके उन सबकी फिर उसने विदा की विदा करके वह सिंहासन से उठा, उठकर प्रभा. वती के पास आया-' उवागच्छित्ता पभावह देविं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं जाव संलवमाणे संलवमाणे एवं क्यासी' प्रभावती के पास आकर णपाणखाइमसाइमपुप्फवत्थगंधमल्लालंकारेणं सकारेइ, समाणेइ ” स्वच्न ફળને સ્વીકાર કરીને તેણે વિપુલ અશન, પાન, ખાદિમ અને સ્વાદિમરૂપ ચારે પ્રકારના આહારથી તથા પુષ્પ, વસ્ત્ર, ગંધ માળા અને અલંકારોથી तभने। सा२ अन तमनु सन्मान ययु. “ सकारेत्ता संमाणेत्ता, विउल जीवियारिह पोइदाणं दलयइ, दलयित्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता सीहासणाओ अब्भुटेइ, अब्भुट्ठत्ता जेणेव पभावई देवी, तेणेव उवागच्छद" સત્કાર અને સન્માન કરીને તેણે તેમને જીવિકાને લાયક પ્રીતિદાન અપાવ્યું. તે દાન દ્વારા પિતાની પ્રસન્નતા વ્યક્ત કરી તેણે તેમને વિદાય કર્યા ત્યાર मात सिंहासन ५२थी ही प्रभावती चीनी पासे गये. “ उवागच्छित्ता पभावई' देवि ताहि इद्वाहिं कताहिं जाव संलवमाणे संलवमाणे एवं बयासी" त्यां શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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