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________________ ४१४ भगवतीसूत्रे स्स णं भंते ! एगंमि आगासपएसे किं जीवा, जीवदेसा, जीवपएसा? अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपएसा ? ' हे भदन्त ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकस्य खलु एकस्मिन् आकाशमदेशे किं जीवाः, जीवदेशाः, जीवप्रदेशाः सन्ति ? किंवा अजीवाः, अजीवदेशाः, अजीवप्रदेशाः सन्ति ? भगवानाह-एवं जहा-अहोलोगखेत्तलोगस्स तहेव' एवं-पूर्वोक्तरीत्या यथा अधोलोकक्षेत्रलोकस्य प्रतिपादितं तथैव तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकस्यापि प्रतिपत्तव्यम् , 'एवं-उलोगखेत्तलोगस्सवि' एवं-पूर्वोक्तरोत्यैव ऊर्यलोकक्षेवलोकस्यापि अधोलोकक्षेत्रलोकरदेव, प्रतिपत्तव्यम्, - नवरं अद्धासमओ नत्थि, अस्वी चउबिहा' नवरम् अधोलोकतिर्यगलोकापेक्षया ऊवलोकस्य विशेषस्तु अत्र अद्धासमयो नास्तीति कृत्वा, अरूपिणश्चतु. ____ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'तिरियलोयखेत्त लोगस्स णं भंते ! एगमि आगासपएसे किं जीवा जीवदेसा जीवपएसा?' हे भदन्त ! तिर्यग्लोकरूप क्षेत्रलोक के एक आकाश प्रदेश में क्या जीव हैं, जीवदेश हैं, जीवप्रदेश हैं ? ' अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपएसा?' अजीव हैं, अजीवदेश हैं या अजीवप्रदेश हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं जहा अहोलोक खेत्तलोगस्स तहेव' जिस प्रकार से अधोलोक रूप क्षेत्रलोक के एक प्रदेश में कहा गया है उसी प्रकार से यहां पर भी जानना चाहिये-' एवं उडलोगखेत्तलोगस्स वि' इसी प्रकारका कथन ऊर्ध्वलोकरूप क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश के विषय में भी समझना चाहिये। परन्तु जो विशेषता है वह इस प्रकार से है कि यहां पर 'अद्धासमयो नस्थि' काल नहीं है। इसलिये चार अरूपी यहां हैं। गौतम स्वामीना प्रश्न-" तिरियलोयखेत्तलोगस्स ण भंते ! एगमि आगा सपरसे किं जीवा, जीवदेसा, जीवपएसा, अजीवा, अजीवदेखा अजीवपएसा ?" હે ભગવન્! તિર્થક રૂપ ક્ષેત્રલોકને એક આકાશપ્રદેશમાં શું છે હેય છે ખરાં? અથવા જીવદેશ છે? કે જીવ પ્રદેશ છે? અછ અછવ દેશ કે અજીવ પ્રદેશ છે? __ महावीर प्रभुना उत्त२-एव जहा अहोलोग खेत्तलोगस्स तहेव" मधासो રૂપ ત્રિલોકના એક આકાશપ્રદેશમાં જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ કથન તિર્યલેક રૂપ ક્ષેત્રલોકના એક આકશ પ્રદેશ વિષે પણ સમજવું. " एवं उङ्कलोगखेत्तलोगस्स वि" मे ४ थन Balas ३५ क्षेत्रसोना એક આકાશપ્રદેશ વિષે પણ સમજવું. પરંતુ તે કથન કરતાં આ કથનમાં सटकी विशेषता छ है “ अद्धासमओ नत्थि" sqas ३५ क्षेत्रमा जन। સદૂભાવ હેતે નથી. તેથી ત્યાં ચાર અરૂપી દ્રવ્યને જ સદ્દભાવ હોય છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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