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________________ ४१२ भगवतीसूत्रे आकाशपदेशे ये अजीवाः सन्ति ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः 'तंजहा-रूवी अजीवा य, अरूबी अजीवा य तद्यथा-रूप्पजीवाश्च, अरूप्यजीवाश्च, 'रूवी तहेव' रूप्यजीवा स्तथैवपूर्वोक्तरीत्यैव स्कन्धाः, देशाः, प्रदेशाः परमाणवश्चेति भावः । 'जे अरूबी अजीवा ते पंचविहा पणत्ता' ये अरू प्यजीवाः सन्ति, ते पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, 'तंजहा-नो धम्मत्यिकाए धम्मस्थिकायस्स देसे १' तद्यथा-नो धर्मास्तिकायः एकस्मिन् आकाशमदेशे धर्मास्तिकायो न संभवति तस्या संख्यातप्रदेशावगाहिश्वात् , अपितु धर्मास्तिकायस्य देशोऽस्ति १, अत्रेदं बोध्यम्-धर्मास्तिकायस्य एकस्मिन् आकाशन्द्रियों के प्रदेश हैं और एक अनिन्द्रिय जीव के प्रदेश है २, एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और अनिन्द्रियों के प्रदेश हैं ३, 'जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता' अधोलोकरूपक्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश में जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं-' तंजहा' जैसे- रुवी अजीवा य, अरूवी अजीवा य' रूपी अजीव और अरूपी अजीव 'रूवी तहेव' रूपी अजीव स्कन्ध के देश, स्कध के प्रदेश और परमाणु हैं । 'जे अरूवी अजीवाते पंचविहा पण्णसा' तथा जो अरूपी अजीव हैं वे पांच प्रकार के कहे गये हैं-' तंजहा' वे ये हैं-'नो धम्मस्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे १,' नो धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकायका देश, एक आकाशप्रदेश में धर्मास्तिकाय पूरा का पूरा नहीं रह सकता है, क्यों कि यह द्रव्य असंख्यातप्रदेशावगाही है। अतः वहां धर्मास्तिकाय का देश है १ । यहां यह समझना प्रदेश। डाय छे. “जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता" अपोलो ३५ क्षेत्राना २४ मा प्रदेशमा १३ छ, मे २डाय छे. “ तंजहा" मे । नीय प्रमाणे छे. 'रूवो अजीवा य, अरूवी अजीवा य" (१) ३५ म0 सने (२) १३पी भ७१, “स्वी तहेव" ची मल २४.५, २४न्धना । २४न्धना प्रश। भने ५२मा ३५ डाय छे. “जे अरूवी अजीवा ते पंचविहा पण्णत्ता" तथा २ ४३पी भ७१ छ तना पाय प्रार su . “ तंजहा" २i , “नो धम्मत्थिकाए, धम्मस्थिकायस्स देसे १,” (१) ને ધર્માસ્તિકાય રૂપ ધર્માસ્તિકાયને દેશ (અંશ) એક આકાશ પ્રદેશમાં ધર્માસ્તિકાય પૂરેપૂરૂં રહી શકતું નથી, કારણ કે તે દ્રવ્ય અસંખ્યાત પ્રદેશાવગાહી હોય છે. તેથી ત્યાં ધર્માસ્તિકાયને દેશ (અંશો જ સંભવી શકે છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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