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________________ ४१० भगवतीसूत्रे सौत्रिकभङ्गः भगद्वयमित्यर्थः, यावत्-द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियपश्चेन्द्रियेषु अनिन्द्रियेषु यावत् १ एकेन्द्रियदेशाच, त्रीन्द्रियाणां देशाच,२-एकेन्द्रियदेशाश्च, चतुरिन्द्रियाणां देशाच, ३ एकेन्द्रियदेशाश्व पश्चन्द्रियाणां देशाश्च अथवा एकेन्द्रियदेशाच, अनिन्द्रियाणांच देशाश्च भवन्ति, 'जे जीवपएसा ते नियमा एगिदियपएसा?' तत्र ये जीवप्रदेशा भवन्ति, ते नियमात्-एकेन्द्रियप्रदेशाः सन्ति, 'अहवा एगिदियपएसा य, बेइंदियस्स पएसार' अथवा एकेन्द्रियप्रदेशाच, द्वीन्द्रियस्य प्रदेशाश्च सन्तिर, 'अहवा एगिदियपएसा य, बेइंदियाण य पएसा ३' अथवा एकेन्द्रियप्रदेशाश्व, द्वीन्द्रियाणांच प्रदेशाः सन्ति, 'एवं आइल्लविरहिओ सिद्धों में जानना चाहिये। यावत् अथवा वहाँ एकेन्द्रियों के देश और अनिन्द्रियों के देश हैं। यहां यावत् शब्दसे-'दीन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौहन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय इनका संग्रह हुवा है। तथा-वहां पर एकेन्द्रियों का देश हैं३, एकेन्द्रियों के देश हैं और पंचेन्द्रियों के देश हैं, अथवा-एकेन्द्रियों के देश हैं और अनिन्द्रियों देश हैं" इस पाठ का संग्रह हुआ है। 'जे जीवपएसा ते नियमा एगिदियपएसा १ वहां जो जीवप्रदेश हैं वे नियम से एकेन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं। 'अहवा-एगिदियपएसा य, बेइंदियस्स पएसा'अथवा-वहां एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं और बेइन्द्रिय के प्रदेश हैं। 'अहवा एगिदियपएसा य बेइंदियाणयपएसा ३' अथवा वहां एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और बेइन्द्रियों के प्रदेश हैं ३, 'एवं અનિન્દ્રિમાં (સિદ્ધોમાં) પણ સમજવા જોઈએ. આ રીતે છેલ્લે વિકલ્પ આ प्रमाणे मनशे- “ त्यां मेन्द्रियाना हे।। () अने भनिन्द्रिये (सिद्धी) ના દેશને સદુભાવ હોય છે “યાવત્ ' પદથી દ્વારિદ્રય, તેઈન્દ્રિય, ચૌઈન્દ્રિય અને પંચેન્દ્રિયને સંગ્રહ કરાયો છે. વચ્ચેના વિકલ્પો આ પ્રમાણે સમજવા અથવા ત્યાં એકેન્દ્રિના દેશો અને તે ઇન્દ્રિયોના દેશો હોય છે. અથવા એકેન્દ્રિયોના દેશે અને ચતુરિન્દ્રિયોના દેશ હોય છે અથવા એકેન્દ્રિયોના દેશે અને પંચેન્દ્રિયના દેશ હોય છે. અથવા એકનિદ્રાના દેશે અને અનિદ્રિના દેશ હોય છે. “जे जीवपएसा ते नियमो एगिदियपएसा १" (१) त्यांचे प्रदेश। हाय छ, नियमयी ४ मेन्द्रिय सपना प्रदेश। डाय छ, “ अहवा एगिदिय पएसाय, बेइंदियस्स पएसा” (२) अया या मेन्द्रियना प्रशा छ भने द्वान्द्रयन प्रश। छ. " अहवा एगिदियपएसा य, बेइंदियाण य पएसा" (૩) અથવા ત્યાં એકેન્દ્રિયના પ્રદેશ અને હીન્દ્રિના પ્રદેશ હોય છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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