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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ९ सू० ३ शिवराजर्षिचरितनिरूपणम् ३५७ समये स्वामी समवसृतः पर्षत् धर्मोपदेशं श्रोतुं निर्गच्छति, धर्मोपदेशं श्रुत्वा प्रतिगता पर्षत् , 'तेणं कालेणं, तेणं समएणं समणस्स भगवश्री महावीरस्स जेटे अंतेवासी जहा बितियसर नियंठुद्देसए जाव अडमाणे बहुजणसदं निसामेइ, बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्खइ, एवं जाव परूवेई'-तस्मिन् काले, तस्मिन् समये, श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य ज्येष्ठोऽन्तेवासी इन्द्रभूति म यथा द्वितीयशनके निर्ग्रन्थोद्देशके पश्चमे यावत् भिक्षार्थम् अटन्-गृहाद् गृहान्तरं परिभ्रमन् बहुजन शब्दं निशाम्यति-शृणोति, बहुजनः अन्योऽन्यस्य एवम् आख्याति, एवं यावत् भाषते, प्रज्ञापयति, प्ररूपयति-एवं खलु देवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवं कहा सुनी हो रही थी-की उसकाल और उस समय में महावीर स्वामी वहां हस्तिनापुर नगर में पधारे, परिषदा-जन समूह धर्मोपदेश सुनने के लिये प्रभु के पास आई, और धर्मोपदेश सुनकर फिर वह वापिस अपने २ स्थान पर चली गई 'तेण कालेण तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जहा वितियसए नियंठुद्देसए जाव अडमाणे बहुजणसई निसामेइ, बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्खर, एवं जाव परूवेइ' उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के बडे शिष्य जो इन्द्रभूति नाम के अनगार थे वे जैसा कि द्वितीय शतक में पांचवें निग्रन्थोद्देशक में कहा गया है उसके अनुसार भिक्षा के लिये एक घर से दूसरे घर फिरते हुए आये उन्होंने उस समय उन अनेक मनुष्यों की बातचीत के शब्दों को सुना-वे परस्पर में कह रहे थे कि 'एवं खलु देवाणुपिया! सिवे रायरिसी एवं आइक्खइ,
મહાવીર પ્રભુ હસ્તિનાપુર નગરમાં પધાર્યા. પ્રખદા (જનસમૂહ) તેમને વંદણ નમસ્કાર કરવાને તથા તેમની ધર્મદેશના સાંભળવાને માટે તેમની પાસે પહોંચી ગઈ વંદણા નમસ્કાર કરીને તથા પ્રભુના ધર્મોપદેશ સાંભળીને લોકો पोत पोतान धे२ ५७i या. 'तेणं कालेणं तेणं समएण समणरस भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासो जहा वितियखए नियंठुसिए जाव अडमाणे बहुजण सई निसामेइ, बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्खइ, एवं आव परूवेह" ते કાળે અને તે સમયે, શ્રમણ ભગવાન મહાવીરના ઈન્દ્રભૂતિ અણગાર (ગૌતમ સ્વામી) નામના જે શિષ્ય હતા, તેઓ બીજા શતકના નિદેશક નામના પાંચમાં ઉદ્દેશકમાં કહ્યા પ્રમાણેની પદ્ધતિથી ગોચરીને માટે નીકળ્યા. ગોચરીને માટે હસ્તિનાપુર નગરના એક ઘેરથી બીજા ઘેર ફરતા એવાં તે ઇન્દ્રભૂતિ असारे मने मनुष्यानी मानी पातयीत सieणी.----एवं सलु देवाण
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯