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________________ ૬૬ भगवती सूत्रे उत्कृष्टेन तु असंख्येयानि भवग्रहणानि सेवेत, गतिमागतिं च कुर्यात्, 'कालादे से णं जहणेणं दो अंतमुत्ता, उकोसेणं असंखेज्जं कालं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा' कालादेशेन कालापेक्षयातु जघन्येन द्वे अन्तर्मुहूर्ते, उत्कृष्टेन तु असंख्येयं कालम् - इयत्कालं सेवेत, इयत्कालं गतिमागतिं कुर्यात, गौतमः पृच्छति' से णं भंते । उप्पलजीवे आउजीवे ?' हे भदन्त ! स खलु उत्पजीवः उत्पलजीवत्वं परित्यज्य अजीवो भवेत् - अकायिकतया उत्पद्येत, अथ च पुनरपि, उत्पकजीवो भवेत् उत्पलजीवतया उत्पद्येत इति भवान्तरात् पुनस्तद्मवग्रहणे कियन्तं कालं सेवेत ? कियन्तं कालं गतिमागतिं कुर्यात् ? दूसरा उत्पल में भवग्रहण करने में रहता है बाद में फिर वह मनुष्यादि गति में चला जाता है। और अधिक से अधिक असंख्यात भवग्रहण तक रहता है और गमनागमन करता रहता है। 'कालादेसे - ण जहणेणं दो असोमुहुसा, उक्को सेणं असंखेज्जं कालं एवतियं कालं मतिरागति करेउजा ' तथा काल की अपेक्षासे जघन्यसे दो अंतर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट से असंख्यात कालतक रूप काल का सेवन करता है और इतने ही कालतक वह गमनागमन करता है। अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'से णं भंते! उप्पलजीवे आउजीवे' हे भदन्त ! वह उत्पलस्थ जीव उत्पल जीवरूपता को छोडकर यदि अप् जीवरूप से अकायिकरूप से उत्पन्न हो जाता है और पुनः वह अपकायिकावस्था को छोडकर उत्पल जीवरूप से उत्पन हो जाता है-इस प्रकार भवान्तर से पुनः उस भवग्रहण करने में वह कितने काल का सेवन करता અને ખીજો ઉત્પલમાં ભવ ગ્રતુણુ કરવા સુધી રહે છે, ત્યાર બાદ તે મનુષ્યાદિ ગતિમાં જતા રહે છે. અને વધારેમાં વધારે અસખ્યાત ભવગ્રહણ સુધી रहे थे याने गमनागमन उरते रहे . " कालादेसेणं जहणेण दो अतोमुहुत्ता, उच्कोसेज असंखेज्ज काल एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरामति' करेज्जा " तथा अजनी अपेक्षाये ते योधामां सोछा मे भुहूत સુધી અને વધારેમાં વધારે અસંખ્યાત કાળનુ સેવન કર્યા કરે છે અને એટલા કાળ પર્યન્ત તે ગમનાગમન કરતા રહે છે. गौतम स्वाभीना प्रश्न " सेण भंते ! उप्पलजीने आउजीवे ? ભગવન્! તે ઉત્પલસ્ય જીવે જે ઉત્પલપર્યાયને છેાડીને અાયિક જીવ રૂપે ઉત્પન્ન થઈ જાય અને અપ્રકાયિક પર્યાયને છેડીને ફરીથી ઉપલજીવ રૂપે ઉત્પન્ન શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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