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भगवती सूत्रे
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ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः ' तं जहा - रूत्री अजीवाय, अरूवी अजीवाय ' तद्यथा-रूप्य जीवाश्व, अरूप्यजीवाश्च तत्र 'जे रूवी अजीवा ते चउव्विहा पण्णत्ता ' ये रूपयजीवा प्राच्यां दिशि वर्तन्ते, ते चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः तं जहा - खंधा १, खंधदेसाः २, धपएस ३, परमाणुरोग्गला ४, स्कंधा १, स्कन्धदेशा २, स्कन्ध प्रदेशाः ३, परमाणुपुङ्गलाश्च ४, ' जे अरूत्री अजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता' ऐद्रयां दिशि ये अरूप्यजीवा वर्तन्ते, ते सप्तविधाः प्रज्ञप्ताः, तंजा - 'तद्यथा ते यथा - 'णो धम्मत्थिकार, धम्मत्थिकायस्स देखे १, धम्मत्थिकायस्स पएसा' २, णो अम्मत्थिकार, अधम्मत्थिकायास देसे ३, अधम्मत्थिकायस्स परसा ४, एवम् 'णो आगासत्थिकाए, आगासत्थिकायस्स देसे ५, आगासत्थिकायस्स
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जो अजीब रहते हैं वे दो प्रकारके कहे गये हैं 'तं जहा ' जो इस तरहसे हैं ' खत्री अजीवा य, अरूबी अजीवाय ' एक रूपी अजीव और दूसरे अरूपी अजीव 'जे रुवी अजीवा, ते चउच्विहा पण्णत्ता' जो इस ऐन्द्री दिशामें रूपी अजीब रहते हैं वे चार प्रकारके कहे गये हैं-' तं जहा जैसे- 'खंधा १, खंध देसा २ खंधपएसा ३ परमाणुपोग्गला ' स्कन्ध १, स्कन्धदेश २, स्कन्धप्रदेश ३ और परमाणुपुद्गल ४ 'जे अरूवी अजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता' इस दिशा में जो अरूपी अजीव रहते हैं वे सात प्रकार के कहे गये हैं 'तं जहा' वे सात भेद इस प्रकार से हैं "णो धम्मस्थिकाए, धम्मथिकास देसे १, धम्मस्थिकायस्स परसा २, णो अधम्मस्थिकाए, अधम्मस्थिकायस्स देसे ३, अधम्मस्थिकायरस पएसा ४, एवं णो आगासत्काए, आगासस्थिकायस्स देसे ५, आगासत्थिकायस्स परसा ६, 'जे अजीवा वे दुविहा पण्णत्ता પ્રદેશ હાય છે આ પૂર્વ દિશામાં જે अलव रहे छे ते मे अझरना उद्या छे, " तंजहा " मे प्राशे नीचे प्रमा छे-" रुवी अजीवा य, अरूवी अजीवाय " (१) ३थी अत्र भने (२) अ३यी अनुव " जे रूवी अजीवा, ते चउव्धिहा पण्णत्ता - तंजहा " मा पूर्व दिशामां मे ३यी अलवा रहे है तेना नीचे प्रमाणे यार अार उद्या छे- “ खंधार, खंधादेसार, खंधपएसा ३, परमाणुपागाला ४, ” (१) २४न्ध, (२) २४न्धहेश, (3) अन्धप्रदेश भने (४) परमायु युइगल. जे अरूवी अजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता આ દિશામાં જે અરૂપી અજીવ રહે છે, તે સાત પ્રકારના કહ્યા छे, " तंजहा " ? सात अारो नीचे प्रभा छे- “ णो धम्मत्थिकाए, धम्मस्थिकारस देसे पसार, णो अधम्मस्थिकाए, अधम्मत्थि कायस्त्र देसे ३, अधग्मत्थिकाथस्व पसा४, एवं णो आगासस्थिकाए, आगासत्थिकायश्वदेसे५, आगासत्थिकायरस
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
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