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________________ भगवती सूत्रे अथ एकविंशतितमं संज्ञाद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति- 'तेणं भंते ! जीवा किं आहारसन्नो उत्ता, भयसन्नोवउत्ता, मेहुणसन्नोवउत्ता, परिंग्गहसन्नोवउत्ता ?' हे भदन्त ! ते खलु उत्पलस्था जीवाः किम् आहारसंज्ञोपयुक्ता भवन्ति ? किंवा भयसंज्ञोपयुक्ता भवन्ति ? किंवा मैथुनसंज्ञोपयुक्ताः भवन्ति, किंवा परिग्रहसंज्ञोपयुक्ताः भवन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! आहारसन्नो उत्तावा, असीती गंगा २१ ' हे गौतम ! उत्पलस्था जीवाः आहारसंज्ञोपयुक्तावा भवन्ति, भयसंज्ञोपयुक्तावा भवन्ति, मैथुनसंज्ञोपयुक्तावा भवन्ति, परिग्रहसंज्ञोपयुक्तावा भवन्ति इत्यादिरीत्या अशीर्ति भङ्गा भवन्ति, तथाहि - एक कयोगे एकवचनेन चत्वारः४, बहुवचनेनापि चत्वारएव ४ । प्रकार के कर्मों के बंधक होते हैं और अनेक जीव आठ प्रकार के कर्मों के बंधक होते हैं, इस प्रकार से ये आठ भंग हैं। बीसर्वा यह बंधद्वार है | २०| अब गौतम इक्कीसवें संज्ञाद्वार को आश्रित करके प्रभु से ऐसा पूछते हैं- तेणं भंते! जीवा कि आहारसन्नोव उता, भयसन्नोवउसा मेहुणसन्नो उत्ता, परिग्गहसनोंवउत्ता' हे भदन्त ! उत्पलस्थ जीव क्या आहारसंज्ञोपयुक्त होते हैं, या भयसंज्ञोपयुक्त होते हैं? अथवा मैथुनसंज्ञावाले होते हैं ? अथवा परिग्रह संज्ञोपयुक्त होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' गोयमा' आहारसन्नो उत्ता वा असीतीभंगा' हे गौतम ! उत्पस्थ वे जीव आहारसंज्ञावाले भी होते हैं, भयसंज्ञोपयुक्त भी होते हैं, मैथुन संज्ञोपयुक्त भी होते हैं, और परिग्रहसंज्ञोपयुक्त भी होते हैं। इसरीति से यहां पर अस्सी भंग होते हैं। वे इस प्रकार से होते हैं - एक के योग में एक वचन को लेकर चार भंग और बहुवचन અને અનેક જીવે આઠ પ્રકારના કર્મીના ખધક ઢાય છે. (૪) અથવા અનેક જીવા સાત પ્રકારનાં કર્માના પણ અન્ધક હોય છે અને આઠ પ્રકારનાં ક્રર્માના पशुजन्य होय . या रीते दुस या लांगा जने छे ।। २० ॥ २५८ , 79 २१ भां स'ज्ञ'द्वारनी प्र३याथा - गौतम स्वामीने! प्रश्न- " तेण भंते! जीवा किं आहारसन्नावउचा, भय सन्नोवउत्ता, मेहुणखन्नोवउत्ता परिग्गहसन्नोव उत्ता ? : હે ભગવન્! ઉત્પલના તે જીવે આહારસજ્ઞાથી યુક્ત ડાય છે ખરાં? ભયસ'જ્ઞાથી યુક્ત હાય છે ખરાં ? મૈથુનસંજ્ઞાથી યુક્ત હોય છે ખરા? પરિગ્રહ સ'જ્ઞાથી યુક્ત હાય છે ખરાં ! महावीर प्रभुने। उत्तर- " अहारसन्नोव उत्ता वा असीती भंगा " हे गौतम! ઉત્પલસ્થ તે જીવે આહાર સરંજ્ઞાથી પણ યુક્ત હોય છે, ભય સંજ્ઞાથી પણ યુક્ત હાય છે, મૈથુન સંજ્ઞાથી પણ યુક્ત હાય છે અને પરિગ્રહ સંજ્ઞાથી भालु युक्त होय हे खड़ी उस ८० भांगा जने छे. ते लांगा ( विठ्ठह्यो ) નીચે પ્રમાણે સમજવા-એકના ચૈાગથી એક વચનવાળા ૪ ભાંગા અને મહુ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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