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________________ भगवतीसूत्रे अथ एकोनविंशं क्रियाद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-' तेणं भंते ? जीवा कि सकिरिया, अकिरिया ? ' हे भदन्त ! ते खलु उत्पलस्था जीवाः किं सक्रिया भवन्ति ? किंवा अक्रिया भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा! नो अकिरिया, सकिरिएवा, सकिरियावा १९' हे गौतम ! उत्पलस्था जीवाः नो अक्रिया भवन्ति, अपितु उत्पलस्य एकात्रावस्थायाम् जीवस्य एकत्वात् सक्रियोग भवति, द्वयादिपत्रावस्थायांतु जीवानामनेकत्वात् सक्रिया वा भवन्ति। इत्येकोनविंशं क्रियाद्वारम् ॥ १९ ॥ अथ विंशतितमं बन्धकद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-' तेणं भंते ! जीवा कि सत्तविहबंधगा, अविहबंधगा?' हे भदन्त ! ते खलु उत्पलस्था जीवाः किं सप्तविध कर्मबन्धका भवन्ति ? किंवा अष्टविधकर्मबन्धका भवन्ति ? भगवानाह अव उन्नीस वें क्रियाहारको आश्रित करके गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-'तेणं भंते ? जीवा किं सकिरिया, अकिरिया, हे भदन्त ! उत्पलस्थ वे जीव क्या सक्रिय होते हैं अथवा अक्रिय होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा! नो अकिरिया. सकिरिए वा, सकिरिया वा' हे गौतम! उत्पलस्थ वे जीव अक्रिया वाले नहीं होते हैं किन्तु उत्पल की एकपत्रावस्था में जीव की एकतामें वह जीव सक्रिय होता है और उत्पल की व्यादिपत्रावस्था में वर्तमान अनेक जीवों के होजाने से वे सब जीव सक्रिय होते हैं। इस प्रकार से यह उन्नीसवां क्रियाद्वार है । १९। ___अब गौतम स्वामी २० वें बन्धकद्वार को आश्रित करके प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'तेणं भंते ! जीवा किं सत्तविह बंधगा, अविहबंधगा' हे भदन्त ! वे उत्पलस्थ जीव क्या सात प्रकार के कर्मों के बंधक होते १६मा प्रियाद्वारनी ५३५४।--गौतम स्वाभाना प्रश्न-" तेणं भंते ! जीवा किं सकिरिया, अकिरिया १" मग ! Guaन त । शु. सठिय હોય છે કે અક્રિય હોય છે ? महावीर प्रसुने। उत्त२-" गोयमा ! नो अकिरिया, सकिरिए वा, सकिरिया वा " गौतम ! ५सना ते ४ महिय (Gया ति) डोता નથી, પરંતુ એક પત્રાવસ્થાવાળા ઉત્પલમાં રહેલ એક જીવ સક્રિય હોય છે, અને ઉત્પલની અનેક પત્રાવસ્થાની અપેક્ષાએ તેમાં રહેલા અનેક જીવો સક્રિય डाय छे. ॥१४॥ २० भां मानी ५३५।- गौतम स्वामीना प्रश्न-" तेण भंसे ! जोया किं सत्तविह बंधगा, अदुविह बंधगा ?” डे सावन् ! S५सती ते જ સાત પ્રકારનાં કર્મોને બન્ધક હોય છે કે આ પ્રકારનાં કર્મોના બન્ધક હોય છે ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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