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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०११ उ०१ स० १ उत्पले जीवोत्पातनिरूपणम २३९ जीवाः ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः किम् उदीरका भवन्ति, किं वा अनुदीरका भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! णो अणुदीरगा, उदीरएवा, उदीरगावा, एवं जाव अंतराइयस्स, नवरं वेयणिज्जाउएस अट्ठ भंगा' हे गौतम ! उत्पलस्था जीवा ज्ञानावरणीयस्य कर्मणो नो अनुदीरका अनुदीरणावन्तो भवन्ति, तस्यामवस्थायां तेषा. मनुदीरकत्वस्य असंभवात् , अपितु उत्पलस्य एकपत्रतायाम् एकत्वात उदीरको वा भवति, द्वयादिपत्रतायां तु जीवानाम नेकत्वात् उदीरका वा भवन्ति, एवंरीत्या यावत्दर्शनावरणीयादारभ्य आन्तरायिकपर्यन्तानां कर्मणां नो अनुदीरका भवन्ति, अपितु रगा?' हे भदन्त ! उत्पलवर्ती जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदीरक होते हैं या अनुदीरक होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम? 'णो अनुदीरंगा, उदीरए वा, उदीरगा वा-एवंजाव अंतराइयस्स, नवरं वेयणिज्जाउएसु अभंगा' उत्पलवी जीव ज्ञानावरणीय कर्म के अनुदीरक नहीं होते हैं-अनुदीरणा वाले नहीं होते हैं।क्यों कि इस अवस्था में इनमें अनुदीरकता का सर्वथा अभाव रहता है। अतः जब उत्पल एकपत्रावस्था में रहता है तब उसमें एक जीव ही रहता है इसलिये वह एक जीव ही उस समय ज्ञानावरणीय कर्म का उदीरक होता है। तथा जब वही उत्पल अनेक पत्रोंवाला हो जाता है तब वह अनेक जीवों वाला हो जाता है। अतः इस अवस्था में वे सब जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदीरक होते हैं। इसी प्रकार से अन्तराय तक कह देना चाहिये किन्तु दर्शनावरणीय कर्म से लगाकर अन्तराय तक के कर्मों के वे अनुदीरक नहीं होते हैं किन्तु एक पत्रावस्था में તે ઉત્પલસ્થ જીવે શું જ્ઞાનાવરણીય કર્મના ઉદીરક હોય છે, કે અનુદીરક हाय छ? ____ महावीर प्रभुन। उत्तर-“गोयमा" गौतम ! “णां अणुदीरंगा उदीरए वा, उदीरगा वा, एवं जाव अंतराइयस्स, नवरं वेयणिज्जाउएसु अट्ठ भंगा" ઉત્પલ0 જી જ્ઞાનાવરણીય કર્મના અનુદીરક (અનુદીરણાવાળા) હોતા નથી, કારણ કે આ અવસ્થામાં તેમનામાં અનુદીરતાને સર્વથા અભાવ રહે છે. પરંતુ જ્યારે ઉત્પલ એક પત્રાવસ્થામાં હોય છે, ત્યારે તેમાં એક જ જીવ હોય છે, તે એક જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને ઉદીરક હોય છે, ત્યાર બાદ જ્યારે તે ઉત્પલ અનેક પત્રોથી યુક્ત થાય છે, ત્યારે તેમાં જે અનેક જી ઉત્પન્ન થઈ જાય છે તે બધા જ જ્ઞાનાવરણીય કર્મના ઉદીરક હોય છે. એ જ પ્રમાણે અંતરાય સુધી કહેવું જોઈએ. પરંતુ દશનાવરણયથી લઈને અન્તરાય પર્યન્તના કમેન પણ તેઓ અનુદીરક હોતા નથી, પરંતુ એક પત્રાવસ્થાની અપેક્ષાએ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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