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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०११ उ०१ ० १ उत्पले जीवोत्पातनिरूपणम् २३३ पुच्छा, गोयमा ! बंधए वा, बंधगावा, अबंधगावा' नवरं ज्ञानावरणीयदि कर्मापेक्षया आयुष्यस्य कर्मणः को विशेषः ? इति पृच्छा, भगवानाह-हे गौतम ! उत्पलस्थो जीवः एकपत्रावस्थायाम् एकत्वात् आयुष्यस्य कर्मणो बन्धको वा भवति, अबन्धको वा भवति, द्वयादिपत्रावस्थायां तु बहुत्वात् उत्पलस्था जीवाः आयुष्यस्य कर्मणो बन्धका वा भवन्ति, अबन्धका वा भवन्ति । ' अहवा बंधए य, अबंधएय' अथवा बन्धकश्च भवति, अबन्धकश्च भवति, 'अहवा बंधए य, अबंधगाय' अथवा बन्धकश्च भवति, अबन्धकाश्च भवन्ति, 'अहवा बंधगाय, अबंधएय' अथवा बन्धकाच भवन्ति, अबन्धकश्च भवति, 'अहवा बंधगाय, अबंधगाय,' एते अट्ठ भंगा' अथवा प्रकट करते हुए मुत्रकार कहते हैं-'नवरं आउयस्सपुच्छा-गोयमा! बंधए वा अबंधए वा बंधगा य अबंधगा घा' भदन्त ! ज्ञानावरणीयादि कर्मों की अपेक्षा से आयुष्यकर्म में क्या विशेषता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! उत्पलस्थ एक जीव एक पत्रावस्था में अकेला होने से-एक होने से-आयुष्य कर्मका बंधक भी होता है, अथना अबंधकभी होता है. द्वयादिपत्रावस्था में यहुता होने से उत्पलस्थ वे सब जीव आयुष्य कर्म के बंधक भी होते हैं। 'अहवा बंधए य अबंधए य' अथवा एक जीव बंधक और एक जीव अबंधक होता है अहवा बंधए य अबंधगा य' अथवा एक जीव बंधक होता है और अनेक जीव अबंधक होते हैं। 'अहवा बंधगा य, अबंधए य' अथवा अनेक जीव बंधक होते हैं और एक जीव अबंधक होता है 'अहवा बंधगा य अबंधगा य एए अट्ठ भंगा' अथवा अनेक जीव-बंधक होते हैं और द्वारा व्यत री छ-" नवरं आउयस्स पुच्छा गोयमा! बंधएवा, अबंधएवा बंधगा वा, अबंधगा वा" गोतम स्वाभाना प्रश्न- “3 भगवन् ! ज्ञानाવરણીય આદિ કર્મોની અપેક્ષાએ આયુષ્ક કર્મમાં શી વિશેષતા છે? મહાવીર પ્રભુને ઉત્તર હે ગૌતમ! ઉત્પલની એક પત્રાવસ્થામાં ઉત્પલમાં જે એક જીવ હોય છે તે આ યુકર્મને બંધક પણ હોય છે અને અબંધક પણ હોય છે. કયાદિ પત્રાવસ્થામાં તે ઉત્પલમાં જે અનેક જીવો હોય છે તેઓ सपा सामना ५५ ५५५ डाय छ भने २५५ ५५५ डाय छे. ' अहवा बंधए य अबंधए य” अथ। मे १ म अने से ७१ सय डाय छ, “ अहवा बंधए य अबंधगा य" अथवा से ७१ सय छ मन भने 9 मम डाय छे. “अहवा बंधगा य, अबंधए य" अथवा भ० ३० શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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