SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३० भगवतीसूत्रे उत्पलवर्तिनो जीवाः समये समये-प्रतिसमयम् अपहियमाणाः अपहियमाणाः उत्पलात् निस्सार्यमाणाः निस्सार्यमाणाः कियत्कालेन अपहियन्ते ? निस्सार्यन्ते ? भगवानाह-'गोयमा ! तेणं असंखेज्ना समए समए अवहीरमाणा अबहीरमाणा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि ओसप्पिणिहि अवहीरंति' हे गौतम ! ते खलु उत्पलवतिनो जीवाः समये समये प्रतिप्तमयम् अपहियमाणाः अपहिममाणाः निरन्तरं निस्सार्यमाणाः सन्तः असंख्येयाभिः उत्सपिण्यवसर्पिणीभिः अपहियन्ते-निस्सायन्ते किन्तु 'णो चेवणं अपहियासिया३' नो चैव खलु अपहृताः सर्वथा निःसारिताः स्यु-भवेयुः इति तृतीयमपहारद्वारम् ३ ।। अथ चतुर्थ मुच्चत्वरूपावगाहनाद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-'तेसिं णं भंते ! जीवाणं के महालिया सरीरोवगाहणा पण्णत्ता ? ' हे भदन्त ! तेषां खलु उत्पलस्थकालेण अवहीरंति' हे भदन्त ! वे उत्पलवर्ती जीव यदि उस उत्पल में से एक एक समय में बाहर काढे जावें तो कितने काल में वे उससे पूरे बाहर निकाले जा सकते है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-गोयमा' हे गौतम! 'तेण असंखेज्जा समए २ अवहीरमाणा अव. हीरमाणा असंखेजाहिं उस्सपिणी ओसप्पिणीहि अवहीरंति' वे उत्पलवर्ती जीव यदि एक एक समय में उसमें से असंख्यात २ की संख्या में बाहिर निकाले जावें और इस प्रकार से वे निरन्तर असंख्यात उत्सपिणी काल तक एवं असंख्यात अवसर्पिणी काल तक बाहिर निकाले जाते रहें-तब भी वे उसमें 'णो चेव णं अवहिया सिया' पूरे बाहर नहीं निकाले जा सकते हैं । इस प्रकार से यह तृतीय अपहार द्वार है ।३। अप गौतम चतुर्थ उच्चत्वरूप अवगाहना द्वार को आश्रित करके प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'तेसिंण भंते ! जीवाण के महालिया सरीरो. હે ભગવન! ઉત્પલવતી જીવોને જે એક એક સમયે એક એકને હિસાબે બહાર કાઢવામાં આવે, તે કેટલા કાળમાં તેમાંથી તે બધાં ને બહાર કાઢી શકાય છે? महावीर प्रसुन। उत्तर-“गोयमा!" गौतम! तेणं असंखेज्जा समए अवहीरमाणार असंखेज्जाहिं उम्सप्पिणी ओसप्पिणीहि अवहीरंति" ते समाथी જે એક એક સમયે અસંખ્યાતને હિસાબે જીને નિરન્તર બહાર કાઢવામાં આવે, અને અસંખ્યાત ઉત્સર્પિણ અને અસંખ્યાત અવસર્પિણી કાળપર્યત त या निरन्तर या २३ त ५५ "णो चेव ण अपहिया सिया" तमन પૂરેપૂરા બહાર કાઢી શકાતા નથી. આ પ્રકારનું આ ત્રીજું અપહાર દ્વાર છે, રૂા. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy