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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० उ०५ सू०२ चमरेन्द्रादीनामग्रमहिषों निरूपणम् १८९ सानि, तदेतत् त्रुटिकं नाम वर्ग उच्यते, इत्यादि शेषं तदेव-पूर्वोक्तरदेव यथा चन्द्रस्य प्रतिपादितं तथैव प्रतिपत्तव्यम् , 'नवर इंगालवडेंसए विमाणे इंगालगंसि सीहासणंसि, सेसं तंचेव' नवरम्-विशेषस्तु-अङ्गारावतंस के विमाने, अङ्गारके सिंहासने इति वक्तव्यम् , शेषं तदेव पूर्वोक्त चन्द्रप्रकरणवदेव स्वयमूहनीयम् 'एवं जाब वियालगस्स वि, एवं अट्ठासीतीएवि महाग्रहाणं भाणिय जाव भावके उस्स' एवं-पूर्भोक्तरोत्या यावत्-विकालकस्यापि महागहस्य चतस्रः अगमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तत्र खलु एकैकस्या अग्रमहिष्यः चतस्रः चतस्रो देवी साहरूयः परिवारः प्रज्ञप्तः, ताभ्यः एकैका अग्रमहिषी अन्यानि चत्वारि चत्वारि देवीसहस्राणि परिवार विकुर्वितुं प्रभुः, इत्यादि चन्द्रप्रकरणोक्तवदेव ऊहनीयम् । एवं रीत्याऽशीतेरपि महाग्रहाणाम्-अङ्गारक-विकालकत्रुटिक है। बाकी का इसका और सब कथन चन्द्र के परिवार जैसा किया गया है, 'नवरं इंगालवडेंसए विमाणे इंगालगंसि सीहासणंसि, सेसं तं चेव' इसका जो विमान है उसका नाम अंगारावतंसक है और सिंहासन का नाम अङ्गारक है। अवशिष्ट कथन चन्द्र प्रकरण के समान है। 'एवं जाव वियालगस्स वि, एवं अट्ठासीतीए वि महरगहाणं भणियन्वं जाव भावकेउस्स' इसी प्रकार का कथन विकाल महाग्रह का है. अर्थात् इस विकाल महाग्रह की चार पट्टरानियां हैं-इसमें एक एक पट्टरानी का देवी परिवार चार २ हजार का है. तथा इनमें से एक एक पट्टरानी ऐसी शक्तिवाली है जो वह इस परिवार के अतिरिक्त और भी चार २ हजार देवी परिवार की विकर्षणा कर सकती है। इत्यादि सब कथन चन्द्र प्रकरण में कहे हुए कथन की तरह जानना चाहिये. इसी तरह का माहीतुं समस्त ४थन यन्द्रना थन प्रभार समन. "नवरं इंगालवडेंसए विमाणे इंगालगंसि सीहासणंसि, सेसं तंचेव" ५२न्यन्द्रन थन મંગળમાં આટલી જ વિશેષતા છે-મહાગ્રહ મંગળના વિમાનનું નામ અંગારાવતંસક છે, અને સિંહાસનનું નામ અંગારક છે. બાકીનું સમસ્ત કથન ચન્દ્રના કથન મુજબ સમજવાનું છે.
"एवं जाव वियालगस्त्र वि, एवं अद्वासीतीए वि महगहाणं भाणियव्य जाव भावकेउत्स" मे प्रा२नु विस महानु ५५ ४थन सभा એટલે કે વિકાલ મહાગ્રહને પણ ચાર પટ્ટદેવિ છે. તે દરેક પટ્ટદેવિયેનો ચાર ચાર હજાર દેવીઓને પરિવાર છે, અને તે પ્રત્યેક પટ્ટરાણી બીજી ચાર ચાર હજાર દેવીઓનું પિતાની ક્રિય શક્તિ વડે નિર્માણ કરી શકે છે. વિકાલ મહાગ્રહ વિષેનું બાકીનું સમસ્ત કથન ચન્દ્રના કથન પ્રમાણે સમજવું.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯