________________
भगवतीसूत्रे 'तंजहा-चंदप्पभा १, दोसिणाभा २, अश्चिमाली ३. पभंकरा ४,' तद्यथा-चन्द्रप्रभा १, ज्योत्स्नाभा २, अचिर्माली ३, प्रभाकरा ४ च, ‘एवं जहा जीवाभिगमे जोइसिय उद्देसए तहेव' एवं पूर्वोक्तरीत्या यथा जीवाभिगमे तृतीयप्रतिपत्ती ज्योतिषिको द्देश के प्रतिपादितं तथैवा-त्रापि प्रतिपत्तव्यम् , तथाचोक्तं जीवाभिगमे-'तत्थणं एगमेगार देवीए चत्तारि चत्तारि देवीसाहस्सीओ परिवारो पण्णत्तो, पहूणं ताओ एगमेगा देवी अन्नाइं चत्तारि चत्तारि देवीसहस्साइं परिवार विउव्वित्तए, एवामेव सपुधावरेणं सोलस देवीसाहसीओ पणत्ताओ' ति 'तत्र खलु एकैकस्या देव्याश्चत्वारि चत्वारि देवीसहस्राणि परिवारः प्रज्ञप्तः, प्रभुः खलु ताभ्यः एकैका देवी अन्यानि चत्वारि चत्वारि देवीसहस्राणि परिवार विकुर्वितुम्, इन्द्र और ज्योतिष्कों के राजा चन्द्र के चार अग्रमहिषियां कही गई हैं। 'त जहा' जो इस प्रकार से हैं-'चंदप्पभा, दोसिणाभा, अचिमाली, पभंकरा' चन्द्रप्रभा १, ज्योत्स्ना २, अचिर्माली ३, और प्रभंकरा ४, 'एवं जहा जीवाभिगमे जोइसिय उद्देसए नहेव' यहां जैसा जीवाभिगमसूत्र में तृतीयप्रतिपत्ति में ज्योतिषिक उद्देशक में कहा गया है वैसा ही कहना चाहिये. वहां ऐसा कहा गया है-'तत्थ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि चत्तारि देविसाहस्सीओ परिवारो पण्णत्तो, पहूर्ण ताओं एगमेगा देवी अन्नाइं चत्तारि चत्तारि देवीसहस्साई परिवारं विउवित्तए, एवामेव सपुचावरेणं सोलसदेवी साहस्सीओ पण्णत्ताओ' इनमें से एक एक देवी का परिवार चार चार हजार देवियों का कहा गया है. इसके अतिरिक्त ये चारों ही देवियां अपनी २ विकुर्वणा शक्ति के द्वारा इस परिवार के सिवाय अन्य और भी चार २ हजार देवियों को उत्पन्न उत्तर- " अज्जो! चत्तारि अगमहिसीओ पण्णत्ताओ" मा ! ज्योति डेन्द्र यन्द्रन यार समलिषीय। ४ी छे. 'तंजहा" तमनां नाम नीय प्रमाणे छे-" चंदप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा" (१) यन्द्रप्रसा, (२) ज्योत्स्नामा, (3) माघी मने (४) प्रम२१. “ एवं जहा जीवभिगमे जोइसियउद्देसए तहेव" पाभिराम सूत्रना न्योतिषि उद्देशामा द्या પ્રમાણેનું કથન અહીં ગ્રહણ કરવું જોઈએ ત્યાં આ વિષયને અનુલક્ષીને मा प्रमाणे युं छ- " तत्थणं एगमेगाए देवीए चत्तारि चत्तारि देवीसाहस्सीओ परिवारो पण्णत्तो, पहूणं ताओ एगमेगा देवी अन्नाइं चत्तारि चत्तारि देवीसहस्साई परिवार विउवित्तए. एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देवी साहस्सीओ पण्णत्ताओ" તે પ્રત્યેક અગ્રમહિષીને ચાર ચાર હજાર દેવીઓને પરિવાર કહ્યો છે. વળી તે પ્રત્યેક અગ્રમહિષી પોતપોતાની વિકુર્વણ શક્તિ વડે ૪૦૦૦-૪૦૦૦ અન્ય
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯