SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१० उ०५ २०२ चमरेन्द्रादीनामग्रमहिषीनिरूपणम् १७९ कालस्स' तत्र खलु चतसृषु अग्रमहिषीषु मध्ये एकैकस्या : अग्रमहिष्या : एकैकं देवोसहस्रं परिवार :प्रज्ञप्त:, शेषं यथा कालस्य प्रतिपादितं तथैव प्रतिपत्तव्यम् तथाच-ताभ्यश्चतसृभ्योऽयमहिषीभ्य : एकैका अग्रमहिषी अन्यत् एकैकं देवीसहस्र परिवारं विकुक्तुिं प्रभु : समर्था, एवमेव सपूर्वापरेण चत्वारि देवीसहस्राणि परिवारो भवति, तदेतत् त्रुटिकं नाम वर्ग उच्यते इत्यादिकं कालप्रकरणोक्तरीत्याऽवसेयम् । 'एवं माणिभद्दस्सवि' एवं पूर्णभद्रवदेव मणिभद्रस्यापि चतस्त्रो. ऽग्रमहिष्य : प्रज्ञप्ताः, अन्यत् सर्वं पूर्वोक्तरीत्या स्वयमूहनीयम् । स्थविरा : पृच्छन्ति-'भीमस्सणं भंते ! रक्खसिंदस्स पुच्छा' हे भदन्त । भीमस्य खलु परिवार कालको अग्रमहिषियों की तरह एक २ हजार देवीका कहा गया है। इससे संबंधित आगे का और सब कथन काल के प्रकरण में कथित कथन के अनुसार समझना चाहिये । तथाच इन चार अग्रमहिषियों में से एक २ अग्रमहिषी में अपनी विकुर्वणा शक्ति द्वारा अन्य और एक हजार देवी परिवार को उत्पन्न करने की शक्ति है. इस प्रकार इसका देवी परिवार चार हजार का कहा गया है । यह देवी परिवार इसका त्रुटिक है। इत्यादि आगे का और अवशिष्ट कथन काल प्रकरण मेंकही रीति के अनुसार स्वयं लगाना चाहिये। 'एवं माणिभद्दस्स वि' पूर्णभद्र की तरह मणिभद्र के विषय में भी कथन जानना चाहिये-मणिभव की भी चार अग्रमहिषिर्ण कही गई हैं-इत्यादि रूप से सब कथन कर लेना चाहिये । अब स्थविर प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'भीमस्स णं भंते! रक्खसि. दस्स पुच्छा' हे भदन्त ! राक्षसेन्द्र भीम की अग्रमहिषियाँ कितनी कही कालस्स" ते प्रत्ये: ममालिनीना वापरिवार पिशायेन्द्र 100-ममाडपी. એની જેમ એક એક હજારને કહ્યો છે તેને અનુલક્ષીને બાકીનું સમસ્ત કથન પિશાચેન્દ્ર કાળના કથન પ્રમાણે સમજવું. જેમકે..“તે ચાર અગ્રમહિષીમાંની પ્રત્યેક અમહિષી એક એક હજાર દેવીની વિક્ર્વણુ કરી શકવાને સમર્થ હોય છે. તેથી ચારે અગ્રમહિલીએ કુલ ૪૦૦૦ દેવીઓની વિતુર્વણું કરી શકે છે. આ રીતે પૂર્ણભદ્રને દેવી પરિવાર ૪૦૦૦ દેવીઓને છે. એ દેવી સમૂહને જ તેનું બુટિક કહે છે.” ત્યાર પછીનું સમસ્ત કથન પિશાચેન્દ્ર કાળના કથન अनुसार समा.. “ एव माणिभदस्स वि" ५ भद्रना २४ मलिनु કથન પણ સમજવું. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy