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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० उ०५ सू०२ चमरेन्द्रादीनामनमहिषीनिरूपणम् १७७ चमरलोकपालवदेव बोध्यम् । एवं पूर्वोक्तरीत्या महाकालस्यापि चरलेोकपालवदेवावसे यम् । स्थविराः पृच्छन्ति-'सुरुवस्स णं भंते ! भूइंदस्म भूयरण्णा पुच्छा?' हे भदन्त ! मुरूपस्य खलु भूतेन्द्रस्य भूराजस्य कति अग्रमहिष्य : प्रज्ञप्ता ? इति पृच्छा, भगवानाह-'अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसाओपणत्ताओ' हे आर्या :! सुरूपस्य भूतेन्द्रस्य चतस्त्र : अग्रसहिष्यः प्रज्ञप्ता : ' तंजहा-रूवबई १, बहुरूवार, सुरुवा३ सुभगा४,' तघथा-रूपवती१, बहुरूपार सुरूपा३ सुभगा४, च । 'तत्थणं एगमेगाए, सेसं जहा कालस्स, एवं पडिहवस्सवि' तत्र खलु चतसृषु अग्रमहिषीषु मध्ये एकैकस्या अग्रमहिष्याः एक.कं देवीसहस्रं परिवारः प्रज्ञप्तः शेषं यथा कालस्य प्रतिपादित तव प्रतिपत्तनम, तथाच ताभ्यश्चतसृभ्योऽग्रमहिषीभ्यः एकैकादेवी अन्यत् एकैकं देवीसहस्रं परिवार विकुपितुं प्रभु : समर्था, एवमेव सिंहासन का नाम काल है। बाको की और सब इसकी वक्तव्यता चमर लोकपाल की तरह है। अब स्थविर प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सुरू. वस्स णं भंते ! भूइदस्त भूयरपणो पुच्छा' हे भदन्त ! भूतेन्द्र भूतराज सुरूप की अग्रमहिषियां कितनी कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अजो! चत्तारि अग्गमहिसीओपण्णत्ताओ' हे आयों! भूतेन्द्र सुरूप की अग्रमहिषियां चार कही गई हैं। 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'रूववई १, बहुरूवा २, सुरूवा ३, सुभगा ४' रूपवती १, बहुरूपा २, सुरूपा ३, सुभगा ४-'तत्थणं एगमेगाए, सेसं जहा कालस्स, एवं पडिरूवस्स वि' इन चार अग्रमहिषियों में से एक २ अग्रमहिषी का देवी परिवार एक २ हजार का कहा गया है बाकी का और सब कथन काल के कथन जैसा जानना चाहिये। तथा-इन चार अग्रमहिषियों में से एक २ अग्रमहिषी की ऐसी शक्ति विशिष्ट है कि यदि वह चाहे तो अपनी विकुर्वणा शक्ति द्वारा अन्य और १-१ हजार देवी परिवार को स्थविशनो प्रश्न--" सुरुवस्स ण भंते ! भूइंदस्स भूयरण्णो पुच्छा" मा. વન્ ! ભૂતના ઈન્દ્ર, ભૂતરાજ સુરૂપને કેટલી અઝમહિષીએ કહી છે? मडावीर प्रभुने। उत्तर-“ अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ"3 भार्या ! भूतेन्द्र, भूत॥४, सु३५२ या२ पट्टी ही छे. "तंजहा" तमनi नाम प्रमाणे छ-(१) ३५वती, (२) ३५, (3) सु३५॥ भने (४) सुभा. " तत्थण एगमेगाए, सेसं जहा कालस एवं पडिस्वस्स वि" ते પ્રત્યેક અગ્રમહિષીનો દેવીપરિવાર ૧૦૦૦-૧૦૦ દેવીઓને કહ્યો છે. બાકીનું કથન પિશાચેન્દ્ર કાળના કથન અનુસાર સમજવું. એટલે કે તે પ્રત્યેક અગ્ર. મહિષીમાં એવી શક્તિ છે કે તે પોતપોતાની વિક્રિયશક્તિથી ૧૦૦૦-૧૦૦૦ भ० २३ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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