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________________ --- - - -- --- प्रमेयचन्द्रिका रीका श०१० उ०५ सू०२ चमरेन्द्रादीनामप्रमहिषीनिरूपणम् १६७ षट् अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः , 'तंजहा-इला १, मुका २, सदारा ३, सोदामणी ४, इंदा ५, घणविज्जुया ६,' तद्यथा-इला १, शुक्रा २, सदारा ३, सौदामिनी ४, इन्द्रा ५, घन विद्युत्काच । 'तत्थणं एगमेगाए देवीए छ छ देवीसहस्सा परिवारो पण्णत्तो' तत्र खलु षट्स धरणाग्रमहिषीषु मध्ये एकैकस्या देव्याः षट् षट् देवी सहस्राणि परिवारः प्रज्ञप्तः । 'पभूणं ताओ एगमेगादेवीए अन्नाई छ छ देवी सहस्साई परिवार विउवित्तए' प्रभुः समर्था खलु नाभ्यः षड्भ्यः अग्रमहिषीभ्यः एकैका देवी अन्यानि षटू षट् देवीसहस्राणि परिवारम् विकुर्वितुम् , ‘एवामेव सपुधावरेणं छत्तीसं देवीसहस्साई, सेतं तुडिए' एवमेव सपूर्वापरेण पौर्वापर्येण षट्त्रिंशत् देवीसहस्राणि परिवारो भवतीति भावः। तदेतत् त्रुटिकं नाम वर्गउच्यते। स्थविराः पृच्छन्ति-'पभूणं भंते ! धरणे सेसं तंचेव' हे भदन्त ! प्रभुः समर्थः 'अज्जो छ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आयों ! धरणकी ६ अग्रमहिषियां कही गई हैं। 'तं जहा- इला, सुका, सदारा, सोदामणी, इंदा, घणविज्जुया' उनके नाम इस प्रकार से हैं-इला, शुक्रा, सदारा, सोदा. मिनी, इन्द्रा और घनविद्युत्का, 'तत्यणं एगमेगाए देवीए छ-छ देवी सहस्सा परिवारो पण्णत्तो' इनमें एक एक देवीका देवी परिवार ६-६ हजार देवियों का है 'पभूणं ताओ एगमेगा देवी अन्नाई छ छ देवी सहस्साई परिवार विउवित्तए' क्योंकि इन छह अग्रमहिषियों के बीच एक एक देवी अन्य और ६-६ हजार देवियों के परिवार की विकुर्वणा कर सकती है. 'एवामेव सपुव्वावरेण छत्तीसं देवी सहस्साइं, से तं तुडिए' इस प्रकार धरण की देवियों का सब परिवार ३६ हजारका हो जाता है. इस छत्तीस हजार देवी परिवार का नाम ही देवी वर्ग है। नाम २ प्रमाणे छ-" इला, सुक्का, सदाग, सोदामणी, इंदा, धणविज्जुया" (१) jel, (२) शु., (3) सहा२।, (४) मोहाभिनी, (५) छन्द्री अन (९) धनविधु... “ तत्थणं एगपगाए देवीए छ देवीसहस्साई परिवारो पणत्तो" ते प्रत्ये पट्टराणाना वापरिवार १-१ १२ वासानेछ, “पभूणं ताओ एगमेगा देवी अन्नाई छ छ देवीसहस्साई परिवार विउव्वित्तए" ४१२६५ ते प्रत्ये: ૫દેરાણી પિતાની વકિયશક્તિથી બીજી છ છ હજાર દેવીઓનું નિર્માણ કરી शवाने समय हाय छे. “एवामेव सपुव्वावरेण छत्तीसं देवीसहस्साई, से तं डिए" माशते पन्द्रनो मुख हेवीपरिवार 3६००० थाय छे. मात्रीय હજારના દેવીપરિવારને ત્રુટિક (વર્ગ) કહે છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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