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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० उ०४ सू०२ चमरेन्द्रादीनामनमहिषीनिरूपणम् १५९ गं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सोमे महाराया सोमाए रायहा. णीए, सभाए सुहम्माए, सोमंसि सीहासणंसि तुडिएणं, अब सेसं जहा चमरस' हे भदन्त ! प्रभुः समर्थः खलु चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य सोमो महाराजो लोकपालः सोमायां राजधान्यां, सुधर्मायां समायाम् , सोमे सिंहासने त्रुटिकेन पूर्वोक्तेन वैक्रियरचितदेवी सहित देवीवगण सार्द्धम् अवशेषं यथा चमरस्योक्त तथा वक्तव्यम् , तथाच अन्यैश्च बहुभिः असुरकुमारैः देवश्च देवीभिश्च संपरितो महताऽऽह तनाटयगीतवादिततन्त्रीतलतालत्रुटितघनमृदङ्गण्टुप्रवादितस्वेण भोगभोगान् भुनानो विहर्तुमितिभावः । 'नवरं परियारो जहा मरियाभस्स, सेसं तं रिंदस्स असुरकुमाररन्नो सोमे महाराया सोमाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए, सोमंसि सीहासणासि तुडिएण अवसेसं जहा चमरस्स' हे भदन्त ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के लोकपाल सोम महाराज अपनी सेामा नामकी राजधानी में, सुधर्मासभा में सोमसिंहासन पर विराजमान होकर अपने त्रुटिक-वैक्रिय रचित देवी वर्ग से-सहित चार अग्रमहिषियों के साथ दिव्य भोगों को भोगने के लिये समर्थ है क्या? यहां 'अवसेसं जहा चमरस्स' इप्त पाठ से बाकी का कथन जैसा चमर के पाठ में कहा गया है वैसा यहां पर उसे ग्रहण करना चाहिये" ऐसा प्रकट किया गया है। सो चमर के पाठ में ऐसा पाठ कहा गया है "अन्यैश्च यहुभिः असुरकुमारैः देवैश्च देवीभिश्च सपरिवृतो महताऽऽहतनाटयगीतवादिततन्त्रीतलतालत्रुटितघनमृदङ्गपटुप्रवादितरवेणभोगभागान् भुंजानो विहर्तुम्" इनसे -" अतिरिक्त दूसरे-२ २थविशना प्रश्न-“पभूणं भंते ! चमरस्स असुरिंदरस असुरकुमाररन्नो सेामे महाराया सोमाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए सोमंसि सीहासणसि तुहिएणं अव सेसं जहा चमरस्स" भगवन् ! मसुरेन्द्र, ससुरम।२२।०४ यमरने पास સોમ મહારાજ પિતાની સેમા નામની રાજધાનીની સુધર્માસભામાં સેમ નામના સિંહાસન પર વિરાજમાન થઈને, પિતાની ગુટિકન (ક્રિય શક્તિ દ્વારા રચિત દેવીસમૂહની) સાથે અને ચાર અગ્રમહિષીઓની સાથે ભેગે જોગવવાને સમર્થ डाय छे मरे ? सही “अवसेसं जहा चमरस्स" ॥ सूत्र है। ये पात ४८ ४२वामा 20वी छे , भरना २६मा या प्रमाणे धुं छे-" अन्यैश्च बहुभिः असुरकुमारैः देवैश्च देवीभिश्च संपरिवृत्तो महताऽऽहत नाट्यगीतवादिततन्त्री तलतालत्रुटितघनमृदङ्गपटुप्रवादितरवेण भोगभोगान्, मुंजानो विहर्तुम्" अपार्नु શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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