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________________ भगवतीसूत्रे ___ अथ चतुणी नैरयिकाणां चतुश्चतुर्नरकसंयोगेन जायमानान् पश्चत्रिंशद्भङ्गान् प्ररूपयितुमाह-' अहवा एगे' इत्यादि । 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एको वालुकामभायाम् , एकः पङ्कप्रभायां भवति १। ' अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा ' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एको वालुकाप्रभायाम् , एको धूममभायां भवति२। 'अहवा एगे रयणप्पमाए, एगे सकरप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे तमाए होजा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्कराममायाम् , एकस्तमायां भवति ३ । ' अहवा एगे रयणप्पभार, एगे सकरप्पमाए, एगे वालयप्पभाए, - अब सूत्रकार चार नैररिकों के चार चार नरक के संयोग से जायमान ३५ भंगों की प्ररूपणा करने के निमित्त कहते हैं-(अहवा एगे यणप्पभाए एगे सकरप्पभाए एगेवालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होजा) अथवा-एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में और एक नारक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है १, ( अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धमप्पभाए होज्जा २) एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालुकाप्र मा में, और एक नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है २, (अहवा-एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे वालुय. प्पभाए, एगे तमाए होज्जा ) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शाकिरप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, और एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है ३, (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, હવે સૂત્રકાર ચાર નારકના ચાર, ચાર નરકમાં પ્રવેશની અપેક્ષાએ બનતા ૩૫ ભાંગાઓની પ્રરૂપણ કરવા નિમિત્તે કહે છે કે – " अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे ब लुयप्पभाए, एगे पकप्पभाए होजा" (1) भय। 22 ना२४ २त्नप्रभ भां, मे ना२४ ॥४२॥मामा, ४ ना२४ वासुप्रभामा मने से ना२४ ५४मामा अत्पन्न थाय छे. “ अहवा एको रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे व लुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा" (૨) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરા પ્રભામાં, એક નારક वासभामा भने : ना२४ धूमप्रमामा पन्न याय छे. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरपभाए, एगे बालुयप्यभाए, एगे तमाए होजा" (3) मथ। એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરામભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં श्रीभगवती. सूत्र: ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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