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________________ હૃદ भगवती सूत्रे 6 , 6 अथ चतुर्ण नरकसंयोगे, जायमानान् पञ्चोत्तरशतमङ्गान् प्रदर्शयति तत्र एकः, एकः द्वौ १ एकः द्वौ एकः २ " द्वौ, एकः, एकः ३ ' इति यो विकल्पा भवन्ति तत्र प्रथमम् एकः, एकः द्वौ इति विकल्पमाह - ' अहवा एगे रणभाए, एगे सकरप्पभाए, दो वालुयप्पभाए होज्जा ' अथवा एको रत्नप्रभायाम्, एकः शर्करामभायां, द्वौ वालुकाप्रभायां भवतः १, 'अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरपभाए दो पंऋषभाए होज्जा ' अथवा एको रत्नप्रभायाम्, एकः शर्क - रामभायाम्, पङ्कप्रभायां भवतः २ ' एवं जान एगे रयणप्पभाए एगे सक्कर भाए, दो असत्तमाए होज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत् अथवा एको रत्नप्रभायाम् एकः शर्क राप्रभायां द्वौ धूमप्रभायां भवतः ३, अथवा एको रत्नप्रभायाम्, एकः अब सूत्रकार चार नारकों के संयोग में उत्पन्न १०५ भंगों को प्रकट करते हैं इनमें १-१-२, १-२-१, २-१-१, ये तीन विकल्प होते हैं-इन विकल्पों में से जो १-१-२ प्रथम विकल्प है उसकी अपेक्षा से सूत्रकार कहते है - ( अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो वालुयप्पभाए होज्जा ) अथवा एक नारक रत्न प्रभा में उत्पन्न हो जाता है और एक नारक शर्कराप्रभा में उत्पन्न हो जाता है तथा दो नारक वालुकाप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं १, ( अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करपभाए दो पंकप्पभाए होज्जा २ ) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में उत्पन्न हो जाता है, एक नारक शर्कराप्रभा में उत्पन्न हो जाता है और दो नारक पङ्कप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं २, ( एवं जाय एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए, दो अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक रत्नप्रभा में उत्पन्न हो जाता है, एक शर्करा प्रभा में उत्पन्न हो जाता है और હવે સૂત્રકાર જુદી જુદ્દી ત્રણ નરકેામાં ઉત્પન્ન થતા ચાર નરકાના જે १०५ त्रिम्सयोगी लांगा ( विडयो ) थाय छे ते प्रस्ट रे छे. तेमां १-१-२, ૧-ર-૧ અને ૨-૧-૧, આ ત્રણ વિકલ્પા થાય છે. આ ત્રણ વિકલ્પામાંથી જે ૧-૧-૨ ના પ્રથમ વિકલ્પ છે, તે વિકલ્પની અપેક્ષાએ નીચે પ્રમાણે लांगाओ। थाय छे-" अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करत्पभाए. दो वालुयप्पभाए होज्जा " ( १ ) अथवा मे ना२४ रत्नप्रलाभां उत्पन्न थाय छे, भे શરાપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે અને એ નારક વાલુકાપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. 66 अहवा एगे रयणःपभाए, एगे सक्करपभाए, दो पंकप्पभाए होज्जा " (२) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે, એક નારક શરાપ્રભામાં उत्पन्न थाय छे भने मे ना२४ पप्रलाभां उत्पन्न थाय छे. “ एवं जाव एगे रयणनभाए, एगे सक्करपभाए, दो अहे सत्तमोए होज्जा " ( 3 ) अथवा भेड શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૮
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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