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भगवतीसूत्रे एफसयः १-३ ' द्वौ-द्वौ २-२ ' त्रय एकः ३-१' इति विकल्पत्रयेण त्रिषष्टिभाान प्रदर्शयति-'अहवा एगे रयणप्पभाए, तिनि सकरप्पभाए होज्जा' अथवा चतुषु नैरयिकेषु एको नैरयिको रत्नप्रभायां भवति, त्रयः शर्करामभायां भवन्ति १, 'अहवा एगे रयणप्पभाए तिन्नि वालुयप्पभाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायां भवति, यस्तु वालुकामभायां भवन्ति २, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पमाए, हैं-रत्नप्रभा के साथ बाकी की पृथिवियों का योग करने पर १-३ के ६ भंग हो जाते हैं इसी तरह से २-२ के ६ भंग हो जाते हैं, और ३-१ के भी ६ भंग हो जाते हैं कुल ये सब मिलकर १८ भंग हो जाते हैं। शर्कराप्रभा के साथ तीन विकल्पों के-५-५-५ पन्द्रह विकल्प होते हैं, वालुकाप्रभा के साथ ४-४-४=१२ विकल्प होते हैं, पङ्कप्रभा के साथ ३-३-३-मिलकर ९ विकल्प होते हैं-धूमप्रभा के साथ २-२-२=मिलकर ६ विकल्प होते हैं, तमः प्रभा के साथ १-१-१ मिलकर ३ विकल्प होते हैं इस तरह से द्विकसंयोगी विकल्प ६३ होते हैं-इन्हीं विकल्पों को सूत्रकार अब प्रदर्शित करते हुए कहते हैं-(अहवा एगे रयणप्पभाए, तिन्नि सक्करप्पभाए, होज्जा) अथवा चार नैरपिक में से एक नैरयिक रत्नप्रभा में होता है और तीन नैरयिक शर्कराप्रभा में होते हैं १, (अहवा-एगे रयणप्पभाए, तिन्नि वालुयप्पभाए होज्जा) अथवा एक नैरयिक रत्नप्रभा में होता है और तीन नैरयिक वालुकाप्रभा में होते થાય છે-રત્નપ્રભાની સાથે બાકીની ૬ પૃથ્વીઓને યોગ કરવાથી ૧-૩ ના ૬ વિકલ્પ થાય છે, એ જ પ્રમાણે ૨-૨ ના ૬ વિકલ્પ થાય છે, અને ૩-૧ ના ૬ વિકલ્પ થાય છે. આ ત્રણે મળીને કુલ ૧૮ વિકલ થાય છે.
શર્કરા પ્રભા સાથે આ ત્રણ વિકલપના પ+૫+૫=૧૫ વિકલ્પ થાય છે, વાલુકાપ્રભા સાથે આ ત્રણ વિકલ્પના ૪+૪+૪=૧૨ વિક થાય છે. પંક. प्रमानी साये +3+3= विक्ष्य थाय छ, धूमप्रसानी साथै २+२+२=t વિક થાય છે. અને તમામલા સાથે ૧+૧+૧=૩ વિકલપ થાય છે. આ રીતે દ્વિકસાયેગી કુલ ૬૩ વિકલપ થાય છે. - હવે સૂત્રકાર તે ૬૩ પ્રિકસંગી વિકલ્પો પ્રકટ કરે છે–
“ अइवा एगे रयणप्पभाए, तिन्नि सकरप्पभाए होज्जा" (१) मा यार તારમાંથી એક નારક રત્નપ્રભામાં અને ત્રણ નારકો શર્કરા પ્રભામાં ઉત્પન્ન थाय छे. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, तिन्नि वालुयप्पभाए होज्जा" (२) अथवा से ना२४ २त्नप्रभामा भने ना२४ पानामा डाय छे. " एवं जाप
श्री. भगवती सूत्र : ८