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________________ ६३८ भगवती अर्धमासिक्या संलेखनया त्रिंशद्भक्तानि अनशनतया-अनशनेन छिनत्ति, 'छेदेत्ता तस्स ठाणस अगालोइयपडिकं ते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे जाव उवबन्ने' छित्वा तस्य स्थानस्य अनालोचितपतिक्रान्तः-आलोचनप्रतिक्रमणमकृत्वा कालमासे कालं कृत्वा लान्तके कल्पे यावत् त्रयोदश सागरोपमस्थितिकेषु देवकिल्विषिकेषु देवेषु देवकिल्विषिकतया उपपन्नः-उत्पत्ति प्राप्तवान् ।।सू०१६॥ मूलम्-" जमाली णं भंते ! देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाव कहिं उववजिहिइ ? गोयमा! चत्तारि पंच तिरिक्ख जोणियमणुस्सदेवभवग्गहणाइं संसारं अणुपरियहित्ता तओ पच्छा सिज्झिहिइ जाव अंतं काहेइ, सेवं भंते ! सेव भंते ! त्ति, ॥ सू०१७ ॥ ( जमाली समत्तो) सणाए छेदेह ' इस अर्द्ध मासिक संलेखना से अपने शरीर को कृश करके उसने अनशन द्वारा तीस ३० भक्तों का छेदन किया-'छेदेत्ता तस्स ठाणस्त अणालोयपडिकते कालमासे कालं किच्चा लंनए कप्पे जाव उववन्ने ' छेदन करके भी उसने अपने पाप स्थानक की न आलो. चना की और न उसका प्रतिक्रमण किया-इस तरह पापस्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण को नहीं करने से यह काल अवसर काल. कर लान्तककल्प में १३ सागरोपम की स्थितिवाले देवकिल्विषिक देवों में-जो किल्विपिक देव होते हैं उन देवों में-यह १३ सागरोपम की स्थितिवाला किल्विषिक देवरूप से उत्पन्न हुआ। सू० १६ ॥ તેમણે અનશન દ્વારા ૩૦ ભક્તોનું છેદન કર્યું. ત્રીસ ટકના લેજનને પરિ. त्यास ४. ''छेहेत्ता तर ठाणस अणालोइयपडिक्कते कालमासे काल किच्चा लतए कप्पे जाव अवन्ने" मा रीते 30 लोसननी परित्याग ४२५॥ છતાં પણ તેમણે પોતાનાં પાપસ્થાનકે ની આલેચના પણ ન કરી અને પ્રતિક્રમણ (પ્રાયશ્ચિત્ત) પણ ન કર્યું. આ રીતે પાપસ્થાનકની આલોચના અને પ્રતિક પણ કર્યા વિના કાળને અવસર આવતા કાળ કરીને તેઓ લાન્તક કલપમાં ૧૩ સાગરેપમની સ્થિતિવાળા કિત્રિષિક દેવોમાં કિલિવષિક દેવ રૂપે ઉત્પન્ન થયા છે. સૂ. ૧૬ | श्रीभगवती. सूत्र: ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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