SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 640
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयबन्द्रिका टीका श०९ १०३३ सू०१६ देवकिलिबषिकमेवनिरूपणम् ६२९ परिवसन्ति, गौतमः पृच्छति-'कहि णं भंते ! तिसागरोवमट्टिइया देवकिब्धिसिया परिवसंति ?' हे भदन्त ! कुत्र खलु त्रिसागरोपमस्थितिकाः त्रिसागरोपमा स्थितियेषां ते त्रिसागरोपमस्थितिकाः देवकिल्बिषिकाः परिवसन्ति ? भगवानाह'गोयमा ! उपि सोहम्मीसाणाणं कप्पाणं हिहिं सणंकुमारमाहिदेसु कप्पेसु, एत्य णं तिप्तागरोवमट्टिइया देवकिमिसिया परिवसति ' हे गौतम ! उपरिसौधर्मशानयोः कल्पयोः, सौधर्मेशानकल्पाभ्यामूर्ध्वं सनत्कुमारमाहेन्द्रयोः कल्पयोः अधस्तात , अत्र खलु स्थाने त्रिसागरोपमस्थितिकाः देवकिल्बिषिकाः परिवसन्ति । कहिणं भंते ! तेरससागरोवमहिइया देवकिपिसिया परिवसंति ? ' हे भदन्त ! कुत्र खलु त्रयोदशसागरोपमस्थितिकाः त्रयोदशसागरोपमा स्थिति. र्येषां ते त्रयोदशसागरोपमस्थितिकाः देवकिल्लिषिकाः परिवमन्ति ? निवसन्ति ? देवकिल्बिषिक रहते है। हे भदन्त ! जिन किल्पिषिक देवोंकी स्थिति तीन सागरोपमकी है-वे किल्बिषिक देव कहां रहते हैं-इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं-' गोयमा' हे गौतम ! 'उपि सोहम्मीसाणाणं कप्पाणं, हिहिं सणकुमारमाहिदेसु कप्पेसु एत्थ णं तिसागरोवमटिइया देव. किब्धिसिया परिवसंति' सौधर्म ईशान इन दो देवलोकोंके ऊपर एवं सनत्कुमार माहेन्द्र इन दो देवलोकोंसे नीचे ये तीन सागरोपमकी स्थितिवाले देवकिल्बिषिक रहते हैं। अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं - 'हे भदन्त ! 'तेरससागरोवमट्टिया देवकिल्बिसिया कहिं परिवति । जिन किल्पिषिक देवोंकी स्थिति १३ सागरोपमकी है वे किल्वि. षिक देव कहां पर रहते हैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं-'गोयमा' गौतम स्वामीनी 4-" कहिणं भंते तिसागरोमद्विइया देवकिदिवसिया परिवसंति ? " महन्त ! ११ सामनी स्थितिषि है। જ્યાં રહે છે? भरवीर प्रभुन। उt२-" गोयमा !" 3 गौतम ! " उपि सोहम्मी. साणाणं कपाण', हिढेि सण कुमारमाहि देसु कप्पेसु एल्थ ण तिसागरोवमद्विश्या देवकिबिसिया परिवसति" agमश५मनी स्थिति निषि है। સૌધર્મ અને ઈશાન, એ બે કોની ઉપર તથા સનકુમાર અને મહેન્દ્ર કમ્પની નીચે વસે છે. गौतम स्वाभाना -“तेरससागरोवमदिइयो देवकिविसिया कहि परिषसंति ? " मन्त! ते२ सागरी५मनी स्थितिमा पि देव। કયાં રહે છે ? श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy