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________________ - प्रमेयचन्द्रिका टी० श०९ ३० ३२ सू० ३ भवान्तरप्रवेशनफनिरूपणम् ५१ सप्तम्यां भवति ३-(२८) ' अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा' अथवा एको वालुकाप्रभायां भवति, एको धूमप्रभायाम् , एकश्च तमायां भवति (२९) , अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा' अथवा एको वालुकामभायां भवति, एको धूमप्रभायाम् , एकोऽध सप्तम्यां भवति २-(३०) 'अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा' अथवा एको नैरयिको वालुकामभायां भवति, एकस्तु तमायाम् , एकोऽधःसप्तम्यां भवति १-(३१) 'अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा' अथवा एकः पङ्कप्रभायां भवति, एको धूमप्रभायाम् , एकश्च तमायां भवति (३२) 'अहवा एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा' अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाता है २८, ( अहवा एगे वलयप्पभाए, एगेधूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा) अथवा-एक नारक वालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न हो जाता है २९, (अहवाएगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा ३०) अथवा एक नारक वालुकाप्रभा में एक नारक धूमप्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाता है ३०, अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा ) अथवा-एक नारक वालुकाप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधः सप्तमी में उत्पन्न होता है ३१, (अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा) अथवा-एक नारक पङ्कप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है ३२, (अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा-एक नारक पङ्कप्रभा में एक धूमપ્રભામાં, એક પંકપ્રભામાં અને એક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमपभाए एगे तमाए होज्जा) (२८) अथ। એક વાલુકાપ્રભામાં, એક ધમપ્રભામાં અને એક તમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) (३०) અથવા એક વાલુકાપ્રભામાં, એક ધૂમપ્રભામાં અને એક નીચે સાતમી તમस्तममा न२४मा उत्पन्न याय छे. ( अहवो एगे वालुयप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमोए होज्जा) (३१) अथवा मे ना२४ पानामा, से तमःलामा मने मे नीय सातभी न२४मा अत्यन्त थाय छे. ( अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए) (३२) अथवा : ५४प्रमामा, मे धुभ मामा भने थे तभ:प्रभामा उत्पन्न थाय छे. ( अहवा एगे पंकप्पभार श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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