SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 581
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७० भगपतीसू 'जमालिस्स खत्तियकुमारस्प अम्मापियरो समण भगवं महावीर वंदइ, णमंसइ' जमालेः क्षत्रियकुमारस्य अम्मापितरौं श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्देते, नमस्यतः, 'वंदित्ता, णमंसित्ता, जामेव दिसं पाठभूया तामेव दिसि पडिग्गया' वन्दित्वा, नमस्थित्वा याभेव दिशमाश्रिय प्रादुर्भूतौ-समागतौ तामेव दिशं प्रतिगतौपतिनिवृत्तौ । 'तएणं से जमालि खत्तियर सयमेव पंचमुद्वियं लोयं करेइ ' ततःखलु स जमालिक्षत्रियकः स्वयमेव पञ्चपुष्टिकं पञ्चमुष्टिप्रमाणं लोचं केशलुश्चन करोति, 'करित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ' लोचं कुत्वा यत्रैव श्रमगो भगवान् महावीरः आसीत् तत्रैवोपागच्छति, 'उबागच्छित्ता एवं जहा उस भदत्तो तहेव पब्बइयो ' उपागत्य एवं पूर्वोक्तरीत्या यथा ऋषभदत्तः प्रबजितः प्रव्रज्यां गृहीतवान् तथैव जमालिः क्षत्रियकुमारोऽपि प्रवजितः, 'नवर पंचहि पुरिससएहिं सद्धिं तहेव जाव सव्यं सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगई अहिज्जइ ' नवरम् ऋषभदत्तापेक्षया विशेषस्तु पञ्चभिः पुरुषशतैः सार्द्ध तथैव नहीं करना, इस प्रकार कहकर 'जमालिस्त खत्तियकुमारस्त० णमंसइ' जमालि क्षत्रियकुमारके मातापिताने श्रमण भगवान महावीरको नमस्कार किया 'वंदित्ता० पडिग्गया' वन्दना नमस्कार करके फिर वे जिस दिशासे प्रकट हुए थे उसी दिशाकी ओर चले गये, 'तएणं० लोयं करेइ' इसके बाद क्षत्रियकुमार जमालिने पंचमुष्टि प्रमाण लोच किया, 'करित्ता० उवागच्छद' केशलुश्चन कर वे जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे वहां आये, 'उवागच्छित्ता० पव्वहओ' वहां आकर उन्होंने ऋषभदत्त ब्राह्मणकी तरह प्रभुके पास प्रत्रज्या ग्रहण की, जमालिने जो प्रव्रज्या ग्रहण की वह 'नवरं पंचहिं पुरिससरहिं सद्धिं तहेव जाव. सव्वं सामाइयमाइयाइं एकारसअंगई अहिज्जा' लिस्म खत्तियकुमारस्स० णमंसद" या प्रमाणे भासीन डीन तना माता पिता श्रम लगवान महावीरने ! ४री मने नमः४२ ४ा. " वंदित्ता पडिग्गया" ४ नमः४२ ॐशन तमा २ हिशमांथी भ.०यां तi मेर हिशमां पाछi गया. “तएणं० लोयं करेइ" त्या२ माह क्षत्रियभार सभातीस पातानीले ५ भुष्टिमाय सत्य यो." करित्ता० उपागच्छद" લેચ કરીને તે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર જ્યાં વિરાજમાન હતા, ત્યાં આવ્યા. " उवागच्छित्ता० पव्वइओ" त्या भावीन तो महत्त ब्राह्मणुनी रेम મહાવીર પ્રભુ પાસે પ્રત્રજ્યા લીધી. પણ તે બનેની પત્રામાં આટલે જ तशत इतो. “ नवर' पंचहिं पुरिससरहिं सद्धि तहेव जाव, सच सामाइय. श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy