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भगवतीस्चे हतुष्टः करतल यावत् शिरसायत मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा एवं वक्ष्यमाणपकारेण
आदीत्-हे स्वामिन् ! 'तो' तथेति-एवमेवास्तु इत्युक्त्वा आज्ञया विनयेन बचनं प्रतिशगोति-स्वीकरोति 'पडिमुणेता सुरभिणा गंधोदएणं हत्थपाए. परवालेइ, पक्खालेत्ता सुद्राए अट्ठयडलाए पोतीए मुह बंधइ, बंधिता' प्रति. श्रुत्य जमालेः पितुर्वचनं स्वीकृत्य सुरभिणा सुगन्धिना गन्धोदकेन हस्तपादं प्रक्षालपति, प्रक्षास्य शुद्रमा प्रत्यन्तपवित्रीभूतया अष्टपटलया अष्टगुणात्तया अष्टपुटकया मुखात्रिकया मुखं वध्नाति, मुखं बद्ध्वा- जमालिस्स खत्तिय कुमारस्स परेणं जत्तेणं चउरंगुलवग्जे निवमणप्पाउग्गे अगकेसे कप्पा' जमाले क्षत्रियकुमारस्य परेण यत्नेन अत्यन्तसावधानतया चतुरङ्गुलबर्नान् चतुरङ्गुल प्रमाणान विहाय निष्क्रमणपायोग्यान् दीक्षाप्रसङ्गयोग्यान् अग्रकेशान. अग्रभूताः केशाः अग्रके शास्तान पतिकल्पयति-प्रतिकर्त्तयति, 'तएणं जमालिस्स खत्तियकहा तो वह बहुत खुश हुआ एवं आनन्दित चित्त होकर उसने दोनों हाथ जोडे-विनयावनत होकर हे स्वामिन् ! जैसा आप कहते हैं मैं उसी प्रकारसे करूंगा ऐसा कहा-कह करके उनके वचनोंको स्वीकार किया 'पडिसुणेत्ता सुरभिणा गंधोदएणं हस्थपाए पक्खालेइ, पक्खा. लेता सुद्धाए अपडलाए पोत्तीए मुहं बंधइ, पंधिता' स्वीकार करके फिर उसने अपने दोनों हाथों को सुगंधित जलसे धोकर शुद्ध किया. शुद्ध करके फिर उसने अपने मुहको कपडेकी आठ पुडवाली शुद्ध पट्टी करके बांधा, बांध कर 'जमालिस्स खत्तियकुमारस्स परेणं जत्तेणं च उरंगुलवज्जे निचमणप्पाउग्गे अग्गकेसे कप्पा ' क्षत्रियकुमार ज. मालिके चार अंगुल छोडकर केशों के अग्र केशोंको इस तरहसे कतरा कि जिससे वे दीक्षाके प्रसङ्ग के योग्य बन गये, 'तएणं जमालिस्स ख. પુલકિત હૃદયે વિનયપૂર્વક બને હાથ જોડીને તેમને આ પ્રમાણે કહ્યું-- " तहत्ताणाए विणरण वयण पडिसुणेइ " आपनी माज्ञा माथे या छु "पडिसुगेता सुरभिगा गंधोदएण हत्यपाए पक्खाइ, पक्खालेत्ता सुद्धाए अट पडलाए पोत्तीए मुह बंधइ, बंधित्ता " त्या२मा तेथे सुगधित यी पोताना બને હાથને ધેયા, હાથને સાફ કરીને તેણે આઠ પડવાળી કપડાની શુદ્ધ पट्टी भुम ५२ मांधा. माधान “ जमालिप्स खत्तियकुमारस्स परेण जत्तेण चउ. रंगुलवज्जे निक्खमणप्पाउन्गे अग्गकेसे कप्पइ” क्षत्रियमा२ १४भासीन ચાર અંગુલપ્રમાણ કેશ સિવાયના બાકીના અગ્રકેશને બહુ જ જતનપૂર્વક जापान अयाने या मनावी दीया. “तपण जमालिस्स खत्तियकुमारस्स
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૮