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________________ अमेयचन्द्रिका टी० श०९ उ ०३३ सू०८ जमालिवतव्यनिरूपणम ४८९ २। 'मिस्स नार ' ति मिश्रजातम् , कुटुम्बस्य साधोश्च मिश्ररूपेण प्रणिधान यस्मिन् आहारादौ तमिश्रमातम् ३! 'अज्झोयरए ' ति अध्यवपूरकम्-अधिआधिक्येन अपूरणम् चुलिहकोपरि पूर्वस्थापितानादौ साध्वागमनमवगम्य तद्योग्य भक्तादि सिद्धययं पुनः प्राचुर्येग कणिकादेः प्रक्षेपणं कृत्वा यत् सम्पा. दितमशनादि तद् अध्यापूरकमिति । 'पूरए ' ति पूतिकम् यत्र उद्गमादि दोषरहिततया स्वतः परिशुद्रेऽशनादौ अविशुद्ध कोटिकाधार्मिकभक्तादेरवयवस्य मिलनं भवेत्तदशनादि पूतिकमिति ५। 'कीर' ति क्रीतम्-यत् साध्वयं मूल्येन गृह्यते तत् क्रीतमिति ६। 'पामिच्वे' नि मामित्यकम्-यत्-'भूयोऽपि तब दास्या. 'मिस्सजाए'जिस आहारादिके यनाने में कुटुम्बका और साधुका दोनोंका ख्याल रखा गया हो ऐसा वह आहारादि मिश्रजात' है 'अज्झोयरए' अध्यवपूर्वक-पहिले भोजन बनाने के लिये जितनी सामग्री निकाली गई हो-उस सामग्रीमें-कणिक आदिमें-साधुके आगमनको जान करके और अधिक भोजनकी सामग्री उनके उद्देश्यसे मिला लेना और फिर उसका भोजन तैयार करना यह अध्यवपूरक है. 'पूइए' जो भोजन स्वत; आधार्मिक आदि दोषसे रहित होनेके कारण स्वतः तो परिशुद्ध है-परन्तु उसमें अविशुद्ध कोटिवाले आधार्मिक भोजनका अंश मिल गया है, ऐसा अशनादि पूर्तिक दोषवाला होता है । 'कीए' जो साधु को आहार देने के निमित्त खरीद कर लाया गया हो ऐसा आहरादि क्रीत दोषवाला होता है 'पामिच्चे' जो आहरादिक साघुको देने के (3) मिस्सजाए : 7 मा२६ मानावती मते टुम भने साधु, मे मनन ખ્યાલ રાખવામાં આવ્યું હોય છે, એવા આહારાદિને “મિશ્રાત” કહે છે. (४) “ अज्झोयरए " मध्यवपू२४-3ai न मनाने भाट रेटकी સામગ્રી બહાર કાઢવામાં આવી હોય તે સામગ્રીમાં, સાધુના આગમનના સમાચાર જાણીને-બીજી અધિક સામગ્રી તેમને નિમિત્તે મેળવીને ભેજન तैयार ४२वामा सान्यु डाय तो तेने " मध्यपू२४" ४ छे. (५) पूइए २ ભોજન આધાર્મિક આદિ દેષથી રહિત છે અને તે કારણે પરિશુદ્ધ છે એવાં ભોજનમાં અવિશુદ્ધ કેન્ટિવાળા આધાર્મિક ભેજનને અમુક અંશ મેળવી દેવામાં આવ્યું હોય, તે તે આહારદિને “પૂતિક દોષયુક્ત” માનવામાં सावे छ. (6) 'कीए' साधुने निभित्ते परीक्षा माराहन जीत पाणे मा.२ ४ छे. (७) “पामिच्चे" रे भाारा साधुने मा५भाटे । भ०-६२ श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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