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________________ भगवतीसूत्रे बहुजनसाधारणाः कलमलस्य-देहस्थिताशुभद्रव्यविशेषस्थाधिवासेन अवस्थानेन दुःखादुःख रूपाः ये ते तथा, बहुजनानां भोग्यत्वेन साधारणा, ये ते तथा, 'परिकिलेस किच्छदुक्खसज्झा अबुहजणणिसेविया' परिक्लेशेन महामानसायासेन कृच्छदुःखेनच गाढशरीरायासेन ये साध्यन्ते वशीक्रियन्ते ते परिक्लेशकृच्छ्दुःखसाध्याः अबुधनननिषेविताः अविवेकिजनसेविता, आपातरमणीया इत्यर्थः ' सदा साहुगरहणिज्जा' सदा सर्वदा साधु गहणीयाः बुधजननिन्दनीयाः ' अणंतसंसारवडणा, कडुगफलविवागा' अनन्तसंसारवईनाः, अनन्त संसृति परम्परामयाजकाः कटुकफळविपाकाः कटुकः अत्यन्तप्रतिकूलः फलविपाकः फलपरिणामो येषां ते तथा ' चुडलिब्ध अमुच्चमाणदुक्खाणुबंधिणो सिद्धिगमणविग्घा ' चुडलिका इव प्रदीप्ततणपूलिकेव अमुच्यमानदुःखानुबन्धिनः अपरित्यज्यमानदुःखानुवन्धयुक्ताः सिद्धिगमनविघ्नाः सिद्धिप्राप्तिप्रतिवन्धकाः भवन्ति, ' से केसणं जागइ, अम्मताओ ! के पुनिगमणार ! के पच्छागमणार ?' तत् तस्मात् कारणात् हे अम्बतातौ ! कोऽसौ पुरुषः खलु जानाति-को जनः होते हैं, तुच्छ स्वभावामें होते हैं, अपने भीतर स्थित हुए अशुभ द्रव्य विशेष के अबस्थान से ये दुःवादुःख रूप होते हैं, भोग्य होने से ये बहुजन साधारण होते हैं, 'परिकिले सकिन्छ वसन्झा, अबुद्ध जणाणसेविया' मानसिक महान् आयाल से और शारीरिक गाढ पारश्रम से ये वश में किये जाते हैं, अविवेकी जनों द्वारा ही इनकी सेवा होती है-अर्थात् ये आपाततः रमणीय होते हैं 'सदा साहुगरहणिज्जा' साधुजनों द्वारा ये सदा निन्दित होते रहते हैं अगंतसंसारवडणा, कडुगफलविवागा' ये अनन्त संसार के वर्धक होते हैं, इनका विपाक फलकाल में अत्यन्त कटुक होना है, 'चुडलिव अमुच्चमाणदुक्खाणुः पंधिणो, सिद्धिगमणविग्धा' प्रदीप्त घासकेपुलेके समान ये अमुच्यमान दुःखानुबन्धी होते हैं, और सिद्धि की प्राप्ति में ये प्रतिबन्धक होते हैं 'से केस णं जागह, अम्मताओ! के पुन्धि गमणाए,के पच्छागमगाए' इस कारण हे माततात ! कौन ऐसा है जो इस बातको जाने कि લીધે તેઓ અત્યન્ત દુઃખરૂપ જ હોય છે, ભોગ્ય હોવાથી તે બહુજન સાધા२६५ डाय छ, “परिकिलेस किच्छदुक्ख मज्जा अबहजणणिसेविया" भानाम: મહાન પ્રયત્નથી અને શારિરીક ગાઢ પરિશ્રમથી તેમને વશ કરી શકાય છે, અવિવેકી અને અજ્ઞાન લેકે દ્વારા જ તેમનું સેષન થાય છે-એટલે કે આપા तनी अपेक्षा ते २०ीय दागेछ, “ सदा स हगरहणिजा" साधुरानी दा तो तमना सहा निन् ४२राय छ, “अणंतसंसारवडणा, कडुगफलविवागा " તેઓ અનંત સંસારના વર્ધક હોય છે અને તેમને વિપાક ફલકને અતિ ४६४ डाय छे. “ चुडलिब अमुच्चमाणदुक्खाणुबंधिणो, सिद्धिगमणविग्धा" સળગતા ઘાસના પૂળાની જેમ તેઓ અમુમાન (જેને ત્યાગ ન કરી શકાય એવાં) દુઃખાનુબન્ધી હોય છે અને સિદ્ધિગતિની પ્રાપ્તિમાં અવરોધક હોય છે. " से केसणं जाणइ, अम्मताओ! के पुनि गमगाए, के पच्छागमणाए" श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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