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प्रमेयचन्द्रिका टीश० ९ २०३२ सू०३ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् ३१ टीका-'कइविहे णं भंते ! पवेसणए पण्णते ?' गाङ्गेयः पृच्छति-हे भदन्त !कतिविधं खलु प्रवेशनक गत्यन्तरगमनं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह-'गंगेया ! चउबिहे पवेसणए पण्णत्ते' हे गाङ्गेय! चतुर्विधं प्रवेशन प्रज्ञप्तम् ' तं जहा-नेरइयपवेसणए, तिरियजोणियपवेसणए, मणुस्सपवेसणए, देवपवेसणए'तद्यथा-नैरयिकपवेशनकम्,तिर्यग्योनिकमवेशनकम् मनुष्यप्रवेशनकम् , देवप्रवेशनकचा गाङ्गेयः पृच्छति-'नेरइपवेसगए गंभंते! काविहे पण्णत्ते?" हे भदन्त नैरयिकप्रवेशनक खलु कतिविधं प्रज्ञप्तम्?भगवा
टीकार्थ-अपनी गृहीतपर्याय से निकल करके कितनेक जीवों का गत्यन्तर में जो उत्पाद होता है उसका नाम प्रवेशनक है-इसी प्रवेशनक का प्ररूपण सूत्रकार ने इससूत्र द्वारा किया है-इस में गांगेय ने प्रभु से ऐसा पूछा है-(कइविहेणं भंते ! पवेसणए पण्णत्ते) हे भदन्त ! दूसरी गति में जीव का उत्पन्न होने रूप यह प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गंगेया! चउविहे पवेसणए पण्णत्ते) हे गांगेय ! प्रवेशनक चार प्रकार का कहा गया है (तं जहा) जो इस प्रकार से है-(नेरइयपवेसणए, तिरिय-जोणियपवेसणए, मणुस्सपवेसणए, देवपवेसणए) नैरयिकप्रवेशनक, तिर्यश्च योनिक प्रवेशनक, मनुष्यप्रवेशनक और देवप्रवेशनक, अब गांगेय प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(नेरइयपवेसणए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते) हे भदन्त ! नैरयिक प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में
ટીકા–પિતાની ગૃહીત પર્યાયમાંથી નીકળીને કેટલાક જીવોને ગત્યન્તરમાં (અન્ય ગતિમાં) જે ઉત્પાદ થાય છે, તેને પ્રવેશનક કહે છે. સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા એ પ્રવેશનકની પ્રરૂપણ કરી છે–આ વિષયને અનુલક્ષીને गांगेय मगार महावीर प्रभुने पूछे छे -“कइ विहेणं भंते ! पवेसणए पण्णत्ते " 3 महन्त ! मी० तिमा उत्पन्न थवा ३५ प्रवेशन है। પ્રકારના કહ્યા છે?
___ महावीर प्रभुन। उत्तर-" गंगेयो ! " गेय ! " चउविहे पवेसणए पण्णत्ते” प्रवेशन यार प्रा२ना वा छे. “ तजहा" । नीय प्रभाव छ–“ नेरइयपवेसणए, तिरिय-जोणियपवेसणए, मणुस्सपवेसणए, देवपवेसणए" (१) २२यि प्रवेशन, तिय योनि प्रवेशन, (3) मनुष्य प्रवेशन भने (४) देवप्रवेशन.
गेय मारन! प्रश्न-" नेरड्यपवेसणए णं भंते ! कइविहे पण्णत्त" હે ભદન્ત ! નરયિક પ્રવેશનકના કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે?
श्री. भगवती सूत्र : ८