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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०९ उ०३२९०३ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् २१
भवान्तरप्रवेशनकवक्तव्यता। अधोवृत्तानां च केषांचित् गत्यन्तरे प्रवेशो भवति अतो गत्यन्तरप्रवेशनकं परूपयितुमाह-'कइविहे णं भंते ! इत्यादि। ___ मूलम्-कइविहे णं भंते! पवेसणए पण्णत्ते ? गंगेया ! चउविहे पवेसणए पण्णत्ते, तं जहा-नेरइयपवेसणए, तिरियजोणियपवेसणए, मणुस्सपवेसणए, देवपवेसणए । नेरइयपवेसणए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गंगेया ! सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा–रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसणए । एगे णं भंते ! नेरइए नेरइयपवेसणएणं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होजा, सकरप्पभाए होजा, जाव अहेसत्तमाए होजा ? गंगेया ! रयणप्पभाए वा होजा जाव अहेसत्तमाए वा होजा । दोभंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होजा जाव अहेसत्तमाए होजा ? गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा, अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए होज्जा, अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे बालुयप्पभाए होज्जा जाव एगे रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा, जाव--अहवा एगे सकरप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा, एवं जाव--अहवा एगे वाल्लुयप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, एवं एकेका पुढवी छड्डयन्वा, जाव अहवा एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा । तिन्नि
श्री. भगवती सूत्र : ८