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प्रमेयचन्द्रिका टी०श० ९ उ०३२ सू०४ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् १४१ पङ्कप्रभायाम् , एको धूमप्रभायाम्, एकस्तमःप्रभायां भवति १६, ' अहवा एगे सक्करप्पभाए, जाव एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा' १७' अथवा एकःशराप्रभायाम, यावत-एको वालुकाप्रभायाम् , एकः पङ्कप्रभा. याम् , एको धूमप्रभायाम् , एकोऽधः सप्तम्यां भवति १७, 'अहवा एगे सक्करप्पभाए जाव एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा १८ ' अथवा एकः शकराप्रभायाम , यावत-एको वालुकामभायाम् , एकः पङ्कपभायाम् , एकस्तमः प्रभायाम् , एकोऽधः सप्तम्यां भवति १८, 'अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए, होज्जा १९ ' अथवा एगे सकरप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, जाव एगे तमाए होज्जा) अथवा एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में यावत्-एक नारक पंकप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में और एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है १६, (अहवा एगे सकरप्पभाए, जाव एगे पंकपभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा-एक नारक शर्करामभा में, यावत्-एक नारक वालुकाप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में, और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है १७, (अहवा एगे सकरप्पभाए, जाव एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक शर्कराप्रभा में, यावत्-एक नारक वालुकाप्रभा में,-एक नारक पंकप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है १८, (अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा-एक नारक एगे सक्कर 'पभाए, एगे वालुयप्पभाए, जाव एगे तमाए होज्जा ” (१६) Aथा से નારક શર્કરામભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં, એક નારક પંકપ્રભામાં, એક ना२४ धूमप्रमामा मने से ना२४ तम:मामi Gurt थाय छे. “ अहवा एगे सक्करप्पभाए, जाव एगे पंकप्पमाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (१७) १२१ मे ना२४ शशलामा, से ना२४ पानामा, એક નારક પંકપ્રભામાં, એક નારક ધૂમપભામાં અને એક નારક નીચે સાતમી न२४मा 4-1 थाय छे. " अहवा एगे सक्करप्पभाए, जाव एगे पकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा” (१८) अथवा से ना२४ शश. પ્રભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં, એક નારક પંકપ્રભામાં, એક નારક તમઃप्रभामा सने से ना२४ नीय सातमी न२४मां 4-न थाय छे. " अहवा एगे सक्करप्पभाए, पगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, पगे अहे सत्समाए होज्जा” (१८) मथः। स ना२४ शशलामा, मे ना२६ वा.
श्री. भगवती सूत्र : ८