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________________ १२२ भगवतीस्त्रे 'एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए. दो अहे सत्तमाए होज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत् अथवा एको रत्नप्रभायां द्वौ शर्क रामभायां द्वौ पङ्कप. भायां भवतः २, अथवा एको रत्नप्रभोयां, द्वौ शर्करामभायो द्वौ धूमप्रभायां भवतः ३, अथवा एको रत्नप्रभायां, द्वौ शर्करापभायां द्वौ तमायां भवतः ४, अथवा एको रत्नप्रभायां द्वौ शर्कराप्रभायां द्वौ अधः सप्तम्यां भवतः ५, इति द्वितीयविकल्पस्य पञ्चभङ्गाः ५, अर्थ 'द्वौ, एकः द्वौ' इतितृतीयविकल्पमाह-'अहवा दो रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए, दो वालुयप्पभाए होज्जा ' अथवा द्वौ रत्नप्रभायां भवतः, एकः शर्करामभायां, द्वौ वालुकाप्रभायां भवतः १, ‘एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, हो जाते हैं १, ( एवं जाव अहवा एगे रयणपभाए, दो सकरप्पभाए दा अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में और दो नारक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं २, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में, और दो नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं ३, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में और दो नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं ४, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में और दो नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाते हैं, ५ इस तरह से ये ( एक दो दो) रूप द्वितीय विकल्प में भंग हैं । (दो एक दो ) रूप जो तृतीय विकल्प हैं उसमें पांच ५ भंग इस प्रकार से हैं -(अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, दो बालुयप्पभाए होज्जा) अथवा दो नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में और दो नारक वालुकाप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं थाय छे. ( एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए, दो अहे सत्तमाए होज्जा) (२) अथवा ४ ना२४ २त्नप्रमामा, मे ना२४ श भामा भने से ना२४ ५४प्रमामा पन थाय छे. (3) अथ। से ना२४ २त्नप्रभामा, બે નારક શર્કરા પ્રભામાં અને બે નારક ધૂમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે (૪) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, બે નારક શકરા પ્રભામાં અને બે નારક તમ પ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૫) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, બે નારક શર્કરાપભામાં અને બે નારક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. હવે ૨-૧-૨ રૂ૫ ત્રીજા વિકલ્પના પાંચ ભંગ પ્રકટ કરવામાં આવે છે. ( अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सकरपभाए, दो वालुयप्पभाए होज्जा ) (१) અથવા બે નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરા,ભામાં અને બે નારક पालामा पत्र थाय छे. ( एवं जाव अहवा-दो रयणाभाए, एगे सक्कर श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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